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भगवतीसगे एवमेव अनगारोऽपि भावितात्मा एकतः पताका हस्ते कृत्य गतेन आत्मना ऊर्ष विहायः उत्पतेत् ? हन्त, गौतम । उत्पतेत्, अनगारः खलु भदन्त ! भावितात्मा कियन्ति प्रभुः एकतः पताका हस्ते कृत्य गतानि रूपाणि विकुर्वितुम् ? एवं चैव यावत्-व्यकुर्वीद् वा, विकुर्वति वा, विकुर्विष्यति वा, एवम् गयाई विउवित्तए) हे भदन्त भावितात्मा अनगार ऐसे कितने रूपों को अपनी विक्रिया शक्तिसे निष्पन्न कर सकता है कि जिन्होने अपने हाथों में तलवार और ढाल ले रखी है ? (से जहानामए जुवई जुवाणे हत्थे णं हत्थे गेण्हेज्जातं चेव जाव विउविसु वा, विउविति वा, विउव्विस्संति वा) जैसे कोई युवा युवतिको अपने हाथसे हाथमें पकड लेता है-आगे यहां और बाकी का सब कथन पहिले की तरह ही जानना चाहिये और अन्त में वह कथन यहां तक ग्रहण करना चाहिये कि इस प्रकारके रूपों को उस भावितात्मा अनगारने न पहिले कभी अपनी विकुर्वणा शक्तिसे निष्पन्न किया है, और न वर्तमानमें वह ऐसे रूपों को निष्पन्न करता है और न आगे को वह ऐसे रूपोंको निष्पन्न करेगा ही । ऐसा करनेकी उसमें शक्ति है-यही बात इस कथनसे प्रकट की गई है। ऐसा जानना चाहिये। (से जहानामए केइ पुरिसे एगओ पडागं काउं गच्छेजा' हे भदन्त ! जैसे कोई पुरुष हाथमें एक पताका को लेकर चलता है (एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओ पडागा हत्थकिच्चगएणं अप्पाणेणं उइदं वेहायसं उप्पएज्जा ?) इसी तरह से केवइयाई पभू असिचम्महत्थकिच्चगयाइ रुवाइ विउवित्तए ?) गौतम ! ભાવિતાત્મા અણગાર, એવા કેટલાં રૂપનું તેની વિક્રિયા શકિતથી નિમણુ કરી શકવાને समर्थ छ । वैश्यि३पाये डायमा तलवार अने दाज धारण ४२N डाय? (से जहा नामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा तं चेव जाव विउव्विसु वा, विउविति वा, विउव्विस्संति वा) वी शते । युवान ओ४ युवतिने पोताना यथा પકડીને પોતાના ભુજપાશમાં લપેટી એકાકાર બની જાય છે, ત્યાંથી શરૂ કરીને ઉપર્યુકત સમસ્ત કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું જોઇએ. અહીં પણ એ જ વાત કહેવી જોઇએ કે આવી વિકુણ તેમણે ભૂતકાળમાં કદી કરી નથી, વર્તમાનમાં કરતા નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે પણ નહીં. તેમની વિક્ર્વણશકિતનું નિરૂપણ કરવાને માટે જ આ समस्त ४थन ज्यु छ.(से जहानामए केइ पुरिसे एगओ पडागं काउंगच्छेज्जा)
महन्त ! रवी शत पुरुष हारभां से पता न याद छ, एवामेव अणगारे वि भावियप्पा एगओपडागा हत्थ किचगएणं अप्पाणेणं उड्ढं वेहायसं
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩