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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३. उ.४ म.५ अणगारविकुवणानिरूपणम् ६५१ अस्थिमज्जा बहलीभवन्ति, प्रतनुकं मांस-शोणितं भवति, येऽपि च तस्य यथा बादरास्तेऽपि च तस्य परिणमन्ति, तद्यथा-श्रोत्रेन्द्रियतया, यावत्-स्पर्शेन्द्रियतया, अस्थि-अस्थिमज्जा-केशश्मश्रु-रोम-नखतया, शुक्रतया, शोणिततया, अमायी रूक्षं पानभोजनं भुक्त्वा भुक्त्वा नो वमयति, तस्य तेन भक्षेग पान-भोजनेन अस्थि अस्थिमज्जा प्रतनूभवन्ति, बहलं मांस-शोणितम् , पान भोजनको-घृत आदि गरिष्ठ पदार्थके मेल से चिकाशदार बने हुए आहार को-अतिप्रमाणमें खा खा करके वमन करता हैं।(तस्स णं तेणं पणीएणं पाणभोयणेणं अहि-अट्टिमिजा, बहली भवंति) इससे उसप्रणीत-गरिष्ठ-भोजनसे उसके हाड, हाडकी मजा, दृढ-मजबूत होती है (पयणुए मंस-सोणिए भवइ) मांस और रक्त प्रतनु होते हैं । (जे वि य से अहा बायरा पोग्गला. ते वि य से परिणमंति) तथा उस आहार के जो यथावादर पुद्गल है, वे भी उस उसरूपसे उसके परिणत हो जाते है (तंजहा) जैसे (सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए) श्रोत्रेन्द्रियरूप में यावत् स्पर्शनेन्द्रियरूपसे (अहि, अद्विमिंज, केस-मंसु रोमनहत्ताए, सुक्कत्ताए, सोणियत्ताए) अस्थिरूप से-हाडरूपसे-अस्थिमज्जारूप से, केशरूपसें, इमश्ररूपसे, रोमरूप से नखरूप से, विर्यरूप से और खूनरूप से वे आहार के पुद्गल परिणमित हो जाते है। (अमायी णं लूहं पाणभोयणं भाचा भोचा णो वामेइ, तस्स णं तेणं માયી–પ્રમત્ત મનુષ્ય પ્રણત આહાર પેયને—ધી આદિ સ્નિગ્ધ પદાર્થને ઉપયોગ કરીને तयार ४२। यिाशवाय माहारने- भू५ मा मान वमन ४२ छे. (तस्सणं तेणं पणीएणं पाणभोयणेणं अट्ठि-अद्धिमिजा बहली, भवंती ) ते रणे ते uela नथी तनi sisi मने अस्थिम भभूत मने छे. (पयणुए मंससोणिए भवइ) भने तेनुं मांस भने रुधिर प्रतर्नु (पात) मने छे. (जे वि य से अहा बायरा पोग्गला, ते वि य से परिणमंति) तथा तना ते माना। यथामा६२ पुगत छ, तम्। ५ ३५ परिणत थ६ नय छे. (तंजहा भ3 (सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए) ते पुदती श्रीन्द्रियथी २३ रीने २५द्रिय प-तनी पाये दिये। ३५ परिशुभे छ. (अद्वि, अद्विमिंज, केस, मंसु, रोम, नहत्ताए, सुकत्ताए, सोणियत्ताए) तथा ते भाडान गती અસ્થિરૂપે, અસ્થિમજજારૂપે કેશરૂપે, નખરૂપે, રેમરૂપે, વીર્યરૂપે અને રૂધિરરૂપે परिणभे छे. (अमायीणं लूहं पाणभायणं भोचा भोच्चा णो वामेइ, तस्सणं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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