SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 664
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५० भगवतीसूत्रे वा समं कर्तुम् ? गौतम ! नायमर्थः समर्थः एवं चैव द्वितीयोऽपि आलापकः, नवरम् पर्यादाय प्रभुः, स भदन्त ! किं मायी विकुर्वते, अमायी विकुर्वते गौतम ! मायी विकुर्वते, नो अमायी विकुर्वते, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवम् उच्यते, यावत्-नो अमायी विकुर्वते ? गौतम ! मायी प्रणीतं पानभोजन भुत्वा भुक्त्वा वमयति, तस्य तेन प्रणीतेन पान - भोजनेन अस्थिभागवाला करनेके लिये, (विसमं वा समं करतेए पभू) अथवा विषम भागवाले पर्वत को समभाग वाला करने के लिये समर्थ हो सकता है ?) ( गोयमा ! णो इण्डे समह ) हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । ( एवं चैव वितिओ वि आलावगो, णवर - परियाइत्ता पभू ) इसी तरह से द्वितीय आलापक भी कहना चाहिये । विशेषता यह है कि पुद्गलोका ग्रहण करके पहिले कहे अनुसार कर सकता है । ( से भंते ! किं माई विकुव्व, अमाई विकुव्वह ?) हे भदन्त ! मायो-प्रमत्त मनुष्य विकुर्वणा करता है, कि अमाथि अप्रमत्त विकुर्वणा करता है ? (गोयमा) हे गौतम! (माई विकुच्वह नो अमायि विकुव्वइ) जो मनुष्य मायिप्रमत्त होता है वह विकुर्वणा करता है । अमाइ विकुर्वणा नहिं करता है (से केणणं भंते एवं बुच्चइ जाव नो अमाई विकुव्वइ) हे भदन्त माथि मनुष्य विकुर्वणा करता है अमायी अप्रमत्त मनुष्य विकुर्वणा नहीं करता ऐसा जो आपने कहा है-सो इसमें क्या कारण है ? (गोयमा ! ) हे गौतम ! (माई णं पणीयं पाणभोयणं भोच्चा भोच्चा वामेह) मायी - प्रमत्त-प्रणीत ( गोयमा ! णो इणट्ठे समट्टे) हे गौतम! भेतुं मनी शस्तु नथी. महायुद्धसोने श्रद्धा अर्ध्या सिवाय ते अणुगार मे प्रमाणे उरी शउतो नथी. (एवं चेत्र बितिओ त्रि आलावगो- वरं - परियाइत्ता पभू ) मे ४ प्रमाणे जीले खसाय पशु उडेवा જોઇએ. વિશેષતા એટલી જ છે કે ખાદ્યપુદ્ગલેને ગ્રહણ કરીને તે અણુગાર એ પ્રમાણે કરી शम्वाने समर्थ छे. (से भंते ! किं माई विकुब्बइ, अमाई विकुव्व ?) ३ ભદ્દન્ત ! માયી અણગાર વિકુણા કરે છે કે, અમાયી અણુગાર વિષુવ`ણા કરે છે ? ( गोयमा !) हे जौतम (माई विकुव्वर, नो अमाई विकुव्बाइ) भायी - अभत्त મનુષ્ય જ વિકુ ણા કરે છે, અમાયી-અપ્રમત્ત મનુષ્ય વિકČણા કરતા નથી. (સે णणं भंते एवं वच्चइ जाव नो अमाई विकुब्बइ ) डे महन्त ! था अरोमाथ એવું કહેા છે કે માથી મનુષ્ય વિષુવ ́ણા કરે છે, અમાર્યા મનુષ્ય વિધ્રુવ ણા કરતા નથી ? (गोयमा !) हे गौतम! ( माईणं पणीयं पाणभोयणं भोच्चा भोचा वामेइ) શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy