________________
-
प्रमेयचन्द्रिका टी. श.३ उ.४ मू.३ पारिणामिकबलाहकवक्तव्यतानिरूपणम् ६२९
टीका-विकुर्वणाधिकारात् मेघस्य परिणमनक्रियावैचित्र्यमाह-'पभूणे भंते इत्यादि । गौतमः पृच्छति-हे भगवन् ! प्रभुः-समर्थः खलु 'बलाहको मेघः 'एणं महं' एकं महत 'इत्थिरूवं वा, स्त्रीरूपं वा 'जाव-संदमाणियख्वं वा' यावत्-स्यन्दमानिकारूपं वा 'परिणामेत्तए' परिणमयितुं प्रभुरिति पूर्वेण योगः बलाहकस्याजीवतया विकुर्वणाकरणासंभवेन' परिणमयितुम् ' इत्युक्तम् । परिणामश्चास्य विषय में कहा है, वैसा ही यानरूप के विषय में भी जानना चाहिये। विशेषता यह हैं कि-यह मेघ एकतश्चक्रवालरूपसे भी चलता है
और द्विधा चक्रवाल रूप से भी चलता हैं । युग्य, गिल्लि थिल्लि, शिबिका और स्यंदमानिका के रूपमें भी ऐसा ही समझना चाहिये।
टीकार्थ-यहां पर विकुर्वणा का अधिकार चला आ रहा है। इस कारण मेघकी परिणमन कियाकी विचित्रता को सूत्रकार 'पभू णं भंते !' इत्यादि सूत्र द्वारा कह रहे हैं-गौतम इस विषयमें प्रभु से पूछ रहे हैं कि-'भंते णं' हे भदन्त ! 'बलाहगे एगं महं इत्थिरूवं वा जाव संदमाणिय रूपं वा परिणामेत्तए पभूणं!" मेघ एक विशाल स्त्रीके रूपमें परिणत हो सकने में समर्थ है क्या ? यहाँ 'परिणमित्तए' ऐसा जो पद कहा है उसका कारण यह है कि बलाहक मेघ अजीव होता है, इस कारण वह विकुर्वणा करने में अशक्त है-अर्थात् उसमें विकुर्वणा करने की शक्ति संभवित नहीं हो सकती है। इसलिये 'विकुवित्तए' ऐसा पद सूत्रकारने नहीं कहा है। मेघमें जो ऐसा રૂપના વિષે જે કથન કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ યાનરૂપના વિષયમાં પણ સમજવું વિશેષતા એટલી જ છે કે મેઘ એક જ ચક્રવાલરૂપે પણ ચાલે છે અને બે ચક્રવાલરૂપે પણ ચાલે છે. યુગ્ય, ગિહિલ, થિશ્વિ, શિબિકા અને સ્વન્દમાનિકા રૂપના વિષયમાં પણ मेम । सभाg.
ટીકાર્થ-વિમુર્વણાનું વકતવ્ય ચાલી રહ્યું છે, તે કારણે મધની પરિણમન કિયા नी वियित्रतानुं सूत्रा२ 'पभूणं भंते त्या पारा नि३५४ ४२ छे...
*न-भंते ! णं' महन्त ! 'बलाहगे एगं महं इस्थिरूवं वा जाव संदमाणियख्वं वा परिणामेलए पभ्रूणं' हे महन्त ! शुभेघ, मे विशा स्त्री રૂપે પરિણુત થવાને સમર્થ છે? સ્પન્દમાનિક ! પર્યન્તને રૂપે પરિણત થવાને શું સમર્થ છે?
मी 'परिणमित्तए' यह भूवातुं ॥२६ मे छ ? मला (मेघ) १०१ छ, तेणे qिgel ४२वाने समय नथी. तेथी सूत्रा३ 'विकुन्धित्तए' ५४ प्रयोग
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩