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________________ १० भगवतीमत्रे भूतिः अनगारो माम् एवमाख्याति, भाषते, प्रज्ञापयति, प्ररूपयति-एवं खलु गौतम ? चमरः असुरेन्द्रः, असुरराजो महर्द्धिकः, यावत्-महानुभागः स तत्र चतुस्त्रिंशद्भवनावासशतसहस्राणाम् एवं तच्चैव सर्वम् , अपरिशेषम्, भणितव्यम्, यावत् अग्रमहिषीणाम् वक्तव्यता समाप्ता, तत्कथमेतत् भगवन् ! एवम् ? ।मु०५। टीका-"भगवं दोच्चे गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ" भगवान् द्वितीयो गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते नमस्यति “वंदित्ता नमंसित्ता" वहां आकर उन्होंने यावत् पर्युपासना करते हुए श्रमण भगवान् महावीर से इस प्रकार कहा- (एवं खलु भंते ! मम दोच्चे गोयमे अग्गिभूई अणगारे ममं एवमाइक्खइ) हे भदन्त ! द्वितीय गौतम अग्निभूति अनगारने मुझसे ऐसा कहा है (भासइ) ऐसा भाषित किया है, (पण्णवेइ) ऐसा जताया है (पख्वेइ) ऐसा प्ररूपा है (एवं खलु गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया महिड्डीए, जाव महाणुभागे) कि हे गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर बहुत बडी ऋद्धिवाला है यावत् महा प्रभाववाला है। (सेणं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं एवं तं चेव सव्वं अपरिसेसं भाणियव्वं जाव अग्गमहिसीणं वत्तव्वया समत्ता-से कहमेयं भंते एवं) वह ३४ चोंतीस लाख भवनावासोंका एकच्छत्र अधिपति बना हुआ है, इत्यादि समस्त कथन अग्र महिषियों तकका यहां कहलेना चाहिये। तो हे भदन्त ! यह उनका कथन किस प्रकार से है ? ।। मू० ५ ॥ वयासी) त्यां न विधिपूर्व मडावीर माननी पर्युपासना परीने तभणे तभने मा प्रमाणे ह्यु- (एवं खलु भंते ! मम दोच्चे गोयमे अग्गिभूइ अणगारे मम एवमाइक्खइ) 3 महन्त ! wlad गधर मनिभूति मरे भने मेQ Bघुछ (भासइ) समाप्युछ पण्णवेइ मे मताच्यु छ भने (परूवेइ) मेQ प्र३ युछ है (एवं खलु गोयमा चमरे असुरिंदे असुरराया महिडीए,जाव महाणुभागे) 3 गौतम! અસુરેન્દ્ર અસુરરાજ ચમર ઘણી ભારે ઋદ્ધિ, ઘુતિ,યશ,સુખ,બળ અને પ્રભાવવાળે છે. (से णं तत्थ चोत्तीसाए भवणावाससयसहस्साणं एवं तं चेव सव्वं अपरिसेसं भाणियव्वं जाव अग्गमहिसीणं वत्तव्यया समत्ता से कहमेयं भंते एवं) અહીં ૩૪ત્રીસ લાખ ભાવનાવાસના આધિપત્યથી લઈને ચમરની પટ્ટરાણુઓ પર્યન્તનું સમસ્ત કથન સૂત્ર ૧ થી ૪ પ્રમાણે કહેવું જોઈએ. તે હે ભદન્ત! તેમનું તે કથન शुसत्य छ? ॥ सु. ५ ॥ श्री भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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