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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ.४ मू.१ क्रियायावैचित्र्यज्ञानविशेषनिरूपणम् ६०९ जयितव्यम् यावत्करणात् 'त्वक्, शाखा, प्रवालम्, पत्रम्, पुष्पम्, फलम्, इति संग्राह्यम् तथा च मूलेन सह कन्दादिबीजपर्यन्तानां नवानां संयोजनात् नवसंख्यकाश्चतुर्भङ्गयः सम्भवन्ति, अर्थात् 'मूलम्, कन्दः, स्कन्धः, त्वक, शाखा, प्रवालम् , पत्रम् , पुष्पम्, फलम् , बीजम्' इति दश वर्तन्ते । एतेषाञ्च एकैक स्य पूर्वपूर्वस्य क्रमश उत्तरोत्तरेण सर्वेण सह संयोजनात् पश्चचत्वारिंशत द्विकसंयोगा भङ्गा भवन्ति, एतावन्त्येव प्रश्नोत्तररूपेणेह चतुर्भङ्गीसूत्राणि अध्येतव्यानि, तदेव प्रदर्शयन्नाह-एवं कंदेण वि समं संजोए अदां जाव-बी इत्यादि । एवम् उक्तमकारेण कन्देनापि समं संयोजयितव्यम्, यावत्-बीजम् । यावत्करणात् 'स्कन्धः, त्वक, शाखा, प्रवालम्, पत्राम्, पुष्पम्, फलम्' इति संग्राह्यम् कहा कि हे गौतम ! कोई भावितात्मा अनगार ऐसा होता है कि जो वृक्ष के मूल को देखता है, कोई ऐसा होता है जो स्कन्ध को देखता है, कोई ऐसा होता है कि जो दोनों को देखता है और कोई ऐसा भी होता हैं कि जो दोनों को भी नहीं देखता है। इस प्रकारसे वे चारभंग यहां जानना चाहिये । 'एवं' मूल कन्द संबंधी सूत्राभिधाय के क्रमसे 'मूलेणं जाव बीयं संजोएयव्वं' मूल के साथ यावत् बीजको संयुक्त करलेना चाहिये-यहां यावत् पदसे स्वकू-छाल, शाखा, प्रवाल(कोंपल,) पत्र, पुष्प, फल इन शब्दोंका संग्रह किया गया है । इस तरह मूल के साथ कन्द से लेकर बीज तकके नव पदार्थों के संयोजन से उद्भूत नव प्रश्नोंकी उत्तररूप चार चार भंगीका संभव होने से ९ चार भंगी हो जाती हैं । अर्थात् 'मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक्,शाखा, प्रवाल, कोंपल पत्र, पुष्प, फल, बोज ये १० पद हैं। इन दश पदोंके द्विक संयोगी ४५ भंग होते हैं और वे इस प्रकार से हैं कि एकर पूर्वर पद का आगे (१) मावितात्मा मगार वृक्षना भूजन मे छे, (२) ४ थने हे छ, (3) કઈ મૂળ અને થડ, બન્નેને દેખે છે અને (૪) કેઈ મૂળને પણ દેખતે નથી. અને थरने पर पता नथी. 'एवं मलेणं जाव बीयं संजोए ययं मे रत મૂળની સાથે છાલ, ડાળી, કંપળ, પર્ણ, પુષ્પ અને ફળ અને બીજને સંગ કરવાથી બીજાં સાત પ્રશ્નો બનશે. આ રીતે મૂળની સાથે કંદથી લઈને બીજ પર્યન્તના નવ પદાર્થોના સાગથી નવ પ્રશ્ન બનશે. અને તે દરેકના ચાર, ચાર વિકાિવાળા उत्तर भगशे. माशते न यतुम भी तयार थशे. मेटले 'भूस, ६, २, छाल, શાખા, કેપળ, પાન, ફૂલ, ફળ અને બીજ, એ દશ પદો છે. એ દશ પદોના દ્વિક સંયોગી ૫ ભંગ (વિકલ૫) બને છે. તે ૪૫ વિકલ્પ આ પ્રમાણે છે–પ્રત્યેક પદને श्री. भगवती सूत्र : 3
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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