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________________ ५९४ भगवतीसूत्रे नोत्प्लावयति ? अहंदादिप्रभावात् , लोकस्थितिर्वा एषा वर्तते इति संग्राह्यम् , तदेवाह- लोअडिइ ' लोकस्थितिः लोकव्यवस्था, 'लोआणुभावे' लोकानुभावः लोकप्रभावः अन्ते गौतमः भगवद्वचनं प्रमाणयन्नाह-'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति अर्थात् हे भगवन ! भवता यदुक्तं तत् एवं यथार्थभूतमेव 'जाव-विहरइ ' यावत्-विहरति संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरति तिष्ठति । 'किरिया समत्ता' क्रिया समाप्ता क्रियानिरूपणं समाप्तम् ॥ मू० ६ ॥ इति श्री-जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालबतिविरचितायां श्री भगवतीसूत्रस्य प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायां तृतीयशतकस्य तृतीयोद्दे शकः समाप्तः ॥ ३-५ ॥ प्रश्न करे कि लवण समुद्र एक झलकमें जम्बूद्वीप को क्यों नहीं भर देता है ? तो इसका समाधान यह है कि अरिहंत आदि के प्रभाव से वह उसे नहीं भर सकता है । अथवा लोककी स्थिति ही ऐसी है । यहीबात 'लोयट्टिइ लोयाणुभावे' इनपदों द्वारा प्रकट की गई है। अब अन्त में गौतम भगवान के वचन को प्रमाणभूत प्रकट करते हुए कहते हैं कि-'सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति' हे भदन्त ! आपने जो कहा है वह संघ यथार्थभूत ही है । इस प्रकार कहकर वे संयम और तप से आत्माको भावित करते हुए अपने स्थान पर बैठ गये। 'किरिया सम्मत्ता' यह क्रिया निरूपण समाप्त हुआ ॥ मू० ६ ॥ जैनाचार्य श्री घासीलालजी महाराजकृत 'भगवती' सूत्रकी प्रियदर्शि व्याख्याके तीसरे शतकका तीसरा उद्देशक संपूर्ण ॥ કે એવી શંકા કરે કે લવણસમુદ્ર તેના એક જ ઉછાળાથી (ઝલકથી) જંબુદ્વીપને કેમ ભરી દેતું નથી? તે તેનું સમાધાન એ છે કે અરિહંત આદિના પ્રભાવથી એવું मन्तु नथी. अथवा सोनी स्थिति मेवी छ. से वातनुं प्रतिपाहन 'लोयट्रिड लोयाणुभावे' मा पो द्वारा ४२१ामा मायुछे. वे गौतम स्वामी महावीर प्रभुना क्यनामा पोतानी संपूर्ण श्रद्धा व्यत ४२ता ४ छ । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' હે ભદન્ત ! આપે જે પ્રતિપાદન કર્યું તે યથાર્થ જ છે. આ પ્રમાણે કહીને વંદણું નમસ્કાર કરીને સંયમ અને તપથી આત્માને ભાવિત કરતા ગૌતમ સ્વામી તેમને स्थाने मेसी गया. 'किरिया सम्मत्ता' मारीत यिानि३५ समाप्त थाय छे. सू. ६॥ જૈનાચાર્ય શ્રી ઘાસીલાલ મહારાજા “ભગવતી’ સત્રની પ્રિયદર્શિની વ્યાખ્યાના ત્રીજા શતકને ત્રીજે ઉદ્દેશક સમાપ્ત . ૩–૫ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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