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________________ अमेयचदिन्का टीका श. ३ उ. ३ रु. २ क्रियावेदनस्वरूपनिरूपणम् ५४१ -'हंता, अत्थि' इति । हन्त, अस्ति, हन्तेति स्वीकारे अस्ति-सम्भवति, अर्थाश्रमणनिर्ग्रन्थस्य क्रिया सम्भवति, इति भगवतोऽभिप्रायः । मण्डितपुत्रः पुनः प्रश्नयति-'कहं णं भंते !' इत्यादि। हे भदन्त ! कथं केन प्रकारेण खलु 'समणाणं निग्गंथाणं' श्रमणानां निग्रेथानाम् 'किरिया कज्जइ' क्रिया क्रियते भवति ? भगवानाह-मंडियपुत्ता ! हे मण्डित पुत्र ! “पमायपच्चया' प्रमादप्रत्ययात् प्रमादः असावधानता एव प्रत्ययः कारणं तस्मात क्रिया सम्भवति यथा दुष्पयुक्तकायक्रियाजन्यं कर्म भवति, अथ च 'जोगनिमित्तं च योगनिमित्तं च योगो निमित्तं यस्याः सा योगनिमित्ता यथा ऐपिथिकी प्रभु उनसे कहते हैं कि-'हंता अस्थि श्रमण निर्ग्रन्थों के क्रिया संभवती है। मण्डितपुत्र पुनः प्रश्न करते हुए प्रभु से पूछते हैं कि कहं णं भंते ! समणाणं निग्गंथाणं किरिया कन्जई' हे भदन्त ! श्रमण निर्ग्रन्थों के किया किस प्रकार से संभवित होती है ? भगवान् इसमें कारण का प्रदर्शन करते हुए उनसे कहते हैं कि-'मंडियपुत्ता' हे मंडितपुत्र ! 'पमाय पञ्चया' प्रमाद के निमित्त से श्रमण निर्ग्रन्थों के क्रिया संभवित होती है । असावधानता का नाम प्रमाद है-अर्थात् कुशल अनुष्ठानों में उत्साह का नहीं होना, तथा जिस किसी तरह इच्छानुसार उनमें प्रवृत्ति करना यह सब प्रमाद है । इस प्रमाद के कारण उनमें क्रिया का होना संभवता है। जैसे कायकी क्रिया यदि उनकी यत्नाचार से रहित है तो नियम से वहां दुष्प्रयुक्त काय क्रियाजन्य कर्मका आस्रव होगा ही । इसी तरह श्रमण निर्ग्रन्थों के 'जोगनिमित्तं च' योगनिमित्तक ऐपिथिकी क्रिया होती है-अतःइस उत्तर-हता अत्थिा , तभना द्वारा या सलवी A छे. -'कहं णं भंते ! समणाणं निग्गंथाणं किरिया कज्जइ ? 3 महन्त ! શ્રમણ નિર્ચ દ્વારા કેવી રીતે ક્રિયા સંભવી શકે છે? उत्तर-भंडियपुत्ता' भतिपुत्र! 'पमायपच्चया' प्रभाहना २णे श्रम નિર્ચ દ્વારા કિયા સંભવિત બને છે. અસાવધાનતાને પ્રમાદ કહે છે. એટલે કે અનુછાનોમાં ઉત્સાહનો અભાવ, અને ઈચ્છાનુસાર પ્રવૃત્તિ કરવી તેનું નામ પ્રમાદ છે. તે પ્રમાદને કારણે તેના દ્વારા નવીન કર્મો બંધાય છે. જે તેની કાયકી ક્રિયા યતનાચારથી રહિત હોય તે ત્યાં દુwયુતકાય ક્રિયાજન્ય કમને આસવ થવાને જ, એ જ પ્રમાણે श्रम नियथे। 'जोग निमित्तं च योगने रणे पशु भनि। ५५ ४२ छ. योग શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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