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भगवतीसूत्रे द्विविधा प्रज्ञता, तद्यथा-स्वहस्त पारितापनिकी च, परहस्तपारितापनिकीच, प्राणातिपात क्रिया खलु भदन्त ! क्रिया कतिविधा प्रज्ञप्ता? मण्डितपुत्र! द्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-स्वहस्त प्राणातिपातक्रिया च, परहस्तपाणातिपातक्रियाच ।।१।।
टीका-द्वितीयोदेशके चमरोल्पातः प्रोक्तः उत्पातो हि गमनागमनादि रूपः अतः क्रिया स्वरूपमाह-'तेणं कालेणं'-इत्यादि । 'तेणं कालेणं' तस्मिन् भंते ! किरिया कइविहा पण्णत्ता) हे भदन्त ! पारितापनिकी क्रिया कितने प्रकार की कही गई है ? (मंडियपुत्ता) हे मंडितपुत्र (दुविहा पण्णत्ता) पारितापनिको क्रिया दो प्रकार की कही गई है ? (तंजहा) जैसे-(सहत्थपारियावणिया य परहत्थपारियावणिया य) एक स्वहस्त पारितापनिकी क्रिया, और दूसरी परहस्तपारितापनिकी क्रिया । (पाणाइवाय किरिया णं भंते पुच्छा-पाणाइवायकिरिया कइविहा पण्णता) हे भदन्त ! प्राणातिपातक्रिया कितने प्रकारकी कही गई है ? (मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता) हे मण्डितपुत्र ! प्राणातिपातिकी क्रिया दो प्रकार की कही गई है । (तंजहा) वे प्रकार ये हैं (सहत्थपाणाइवाय किरिया य परहत्थपाणाइवायकिरिया य) एक स्वहस्त प्राणातिपातक्रिया और दूसरी परहस्तप्राणातिपातक्रिया ॥
टीकार्थ-द्वितीय उद्देशक में चमर का उत्पात प्रतिपादित किया गया है और यह उत्पात गमन आगमन आदिरूप होता है । तथा गमन आगमन ये क्रियारूप होते है । इसलिये क्रिया के स्वरूपको प्रतिपादन करने के लिये वह 'तेणं कालेणं' इत्यादि सूत्र कहा गया रिया कइविहा पण्णता ?) 3 महन्त ! पारितापनिडी डियाना ear ॥२ - (मंडियपुत्ता! दुविहा पण्णत्ता-तं जहा) भडितपुत्र तेनानीय प्रभा में प्रा२ छे (सहत्थपारियावणिया य परहत्य पारियावणिया य) (१) २१४२त परतापनि। जिया (२) ५२७स्त पारितापनि यिा. (पाणाइवाय किरियाणं भंते ! कइविहा पण्णता) महन्त ! प्रातिपात ठियाना 2प्रा२ छे ? ( मंडियपत्ता) 3 भाडितपुत्र ! (दुविहा पण्णत्ता-तं जहा) प्रातिपात यान नीय प्रभार ४।२ छ-(सहत्थपाणाइवायकिरिया य परहत्थपाणाइचाय किरिया य) (१) २१७२त પ્રાણાતિપાત ક્રિયા અને (૨) પરહસ્ત પ્રાણાતિપાત ક્રિયા.
ટીકાર્થ-બીજ ઉદેશકમાં ચમરના ઉત્પાતનું પ્રતિપાદન કરવામાં આવ્યું છે. તે ઉત્પાત ગમન આગમન આદિરૂપ હોય છે. તથા ગમન અને આગમન ક્રિયારૂપ હોય छ. तेथी याना २१३५नु प्रतिपादन ४२१॥ भाट 'तेणं कालेणं' मा सूत्र Bai छ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩