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भगवतीमूत्रने कमपि शक्रो देवेन्द्रः देवराजो दिव्यां देवर्द्विम् यावत्-अभिसमन्वागताम् , तद्जानीमस्तावत् शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य दिव्यां देवद्धिं यावत्-अभिसमन्वागताम् जानातु तावत्-अस्माकमपि शक्रो देवेन्द्रः, देवराजो दिव्यां देवर्द्धि यावत् अभिसमन्वागताम् , एवं खलु गौतम ? असुरकुमाराः देवाः ऊर्ध्वम् उत्पतन्ति, यावत्-सौधर्म कल्पः, तदेवं भगवन् ! तदेवं भगवन् इति, ॥मू०१३।।
चमरः समाप्तः ॥ देविंदे देवराया दिव्वं देविढेि जाव अभिसमण्णागय) तथा वह देवेन्द्र देवराज यावत् अभिसमन्वागत हमारी दिव्य देवर्द्धिको देखे । तं जाणामो ताव सकस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देवड़ि जाव अभिसमण्णागयं) तथा देवेन्द्र देवराज शक्र की दिव्य देवर्द्धिको कि जिसे उसने यावत् अभिसमन्वागत की है हम जाने तथा (जाणउ ताव अम्हे वि सके देविंदे देवराया दिव्वं देविडूिढं जाव अभिसमन्नागयं) वह देवेन्द्र देवराज शक भी हमारी यावत् अभिसमन्वागत दिव्यदेवर्द्धिको जाने (एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा देवा उडूढ़ उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो) हे गौतम ! इस कारण को लेकर असुरकुमारा देवा उडूढ़ उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो) हे गौतम ! इस कारण को लेकर असुरकुमार देव यावत् सौधर्मस्वर्गतक ऊँचे जाते हैं ! (सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति) हे भदन्त ! जैसा आपने प्रतिपादित किया है वह सर्वथा सत्य है-सर्वथा सत्य है। (चमरो सम्मत्तो) चमरसंबंधी वृत्तान्त समाप्त हुआ ॥_ वि सक्के देविंदे देवराया दिव्यं देविहिं जाव अभिसमण्णागयं ) मने देवेन्द्र हव२४ २४ मे पास ४२वी हिव्य वद्धिन नवे. (तं जाणामो ताव सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो दिव्वं देविड्रिं जाव अभिसमण्णागयं) तथा देवेन्द्र देव२।०४ 3 प्रात ४२वी दिल्य वद्धिने पापणे onliमे मने (जाणउ ताव अम्हे वि सक्के देविंदे देवराया दिव्यं देविडिलं जाव अभिसमण्णागयं) हेवेन्द्र ३१२।२४ : पY माप प्रास ४३८ (६०५ पद्धिने and. (एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा देवा उड्ढं उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्पो) 3 गौतम ! ते ॥२ असुमार वो सोयम ४६५ सुधा अये गय छे. (सेवं भंते ! सेवं भंते त्ति) 3 महन्त ! मापनी વાત તદ્દન સાચી છે, તેમાં શંકાને કોઈ સ્થાન નથી. એમ કહીને વંદણા નમસ્કાર ४शन गौतम स्वामी तभनी अभ्यास असी गया. ( चमरो सम्मत्तो) यभन्नु વૃત્તાંત સમાપ્ત થયું.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩