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________________ ४४२ भगवती सूत्रे तिक ममं वंद, नमसइ, उत्तरपुरत्थिमयं दिसीभायं अवकमइ, वामेणं पादेणं तिक्खुत्तो भूमिं दलेइ, चमरं असुरिंद असुररायं एवं वयासी - मुक्कोसि णं भो ! चमरा ! असुरिंदा ! असुरराया ! समणस्स भगवओ महावीरस्स पभावेण - नहिते इयाणि ममाओ भयं अस्थि त्तिकद्दु जामेव दिसं पाउन्भूए तामेव दिसं पडिगए ॥ सू० ९ ॥ छाया - ततस्तस्य शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अयमेतद्रूप आध्यत्मिकः, यावत् - समुदपद्यत नो खलु प्रभुश्चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराजः नो खलु समर्थः चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराजः, नो खलु विषयः चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरराजस्य आत्मनो निश्रया ऊर्ध्वम् उत्पत्य यावत् - सौधर्मः कल्पः, नान्यत्र अर्हन्तं वा, 'तए णं तस्स' इत्यादि । सूत्रार्थ - (तए णं) इसके बाद (तस्स देविंदस्स देवरण्णो) उस देवेन्द्र देवराज शक्र के (इमेयारूवे अज्झत्थिए) इस प्रकार का आध्यात्मिक (जाव समुपज्झित्था) यावत संकल्प उत्पन्न हुआ (नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया) असुरेन्द्र असुरराज चमर शक्तिवाला नहीं है । ( नो खलु समत्थे चमरे असुरिंदे असुरराया ) असुरेन्द्र असुरराज चमर समर्थ नहीं है (नो खलु विसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो अप्पणो निस्साए उड्ड उप्पहत्ता जाव सोहम्नो कप्पो) तथा असुरेन्द्र असुरराज चमरका यह विषय भी नहीं है कि वह ‘agoi ag' Scule— सूत्रार्थ – (तएणं) त्यार माह-वन छोड्या पछी (तस्स देविंदस्स देवरण्णो) देवेन्द्र देवरान श¥ने ( इमेयारूवे अज्झस्थिए ) मा प्राश्ना आध्यात्मिङ ( जात्र समुपस्थिज्झा) आहि विशेषणुषाणो समुदय उत्पन्न थये। 3 ( नो खलु पभू चमरे असुरिंदे असुरराया) असुरेन्द्र असुररान यमर आरसा मधो शक्तिशाणी नथी, (नो खलु समस्ये चमरे अमुरिंदे असुरराया) असुरेन्द्र असुररान शभर माटो अघी समर्थ नथी. (नो खलु त्रिसए चमरस्स असुरिंदस्स असुररण्णो अप्पणो निस्साए उड्ड उप्पइत्ता जाव सोहम्मो कप्पो) सुरेन्द्र असुररान अभर पोतानी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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