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________________ प्र.टीका श. ३ उ. २ सू.८ शक्रस्य वज्रमोक्षणभगवच्छरगागमननिरूपणम् ४३९ खलु स्वेदो न भवतीति दर्शयितुं कक्षागतस्वेदमिवेत्युक्तम् तथा च अतिशयभयवशात् कक्षागतस्वेदमिव 'विणिम्मुअमाणे विनिर्मुश्चन् 'ताए उकिट्ठाए' तया कयाऽपि विलक्षणया उत्कृष्टया उत्कर्षवत्या 'गत्या' इति यावत्पदसंग्राह्य विशेज्येणान्वयः 'जाव-तिरियमसंखेजाणं' यावत्-तियंगसंख्येयानाम् , यावत्करणात् पूर्वोक्तया त्वरीतया चपलया इत्यारभ्य देवगत्या इत्यन्तं संग्राह्यम् । 'दीवसमुदाणं' द्वीपसमुद्राणाम् 'मज्ज्ञ मज्झेणं' मध्यं मध्येन 'वीईवयमाणे' व्यतिवजन् व्यतिक्रामन् 'जेणेव' यत्रैव यस्मिन्नेव प्रदेशे 'जंबूदीवे' जम्बूद्वीप: 'जाव-जेणेव असोगवरपायवे' यावत् यत्रैव अशोकवरपादपः, यावत्पदेन वैक्रिय शरीर होने के कारण उनके पसीना नहीं आता है फिर भी उसकी अवस्था में भयान्वितता प्रकट करने के लिये ऐसा कह दिया गया है कि मानों उसे कांखों में पसीना सा उस समय आ गया था, इस तरह को स्थिति से युक्त हुआ वह 'ताए उकिट्टयाए' उस उत्कृष्ट गति द्वारा-अत्यंत उतावली से युक्त गमनक्रिया द्वारा-'जाव तिरियमसंखेजाणं दीवसमुदाण मज्ज मज्झेणं वीइवयमाणे २' यावत् तिर्यक् असंख्यात योजनोंतक फैले हुए असंख्यात द्वीप समुद्रों के बोच से होकर जाता २ 'जेणेव जंबू दीवे जाव जेणेव असोगवरपायवे' जहां पर जंबूद्वीप था और यावत् उसमें जहां पर उत्तम अशोक का वृक्ष था एवं 'जेणेव ममं अंतिए' जहां पर मैं था 'तेणेव उवागच्छइ' वहां पर आया ! यहां पर यावत् शब्द से 'दीवे भारहे वासे, सुंसुमारपुरे नयरे, असोगवणसंडे उज्जाणे' इन पदोंका ग्रहण ભયભીત હાલત પ્રકટ કરવા માટે એવું કહ્યું છે કે તેની બગલમાંથી જાણે કે પરસેવે छूटपा य. २नी लय ४२ परिस्थितिमा भूयसो भ२ ताए उक्कियाए' तेनी Srge गतिथी 'जाव तिरियमसंखेज्जाणं' दीवसमुदाणं मझ मज्झेणं वीई. वयमाणे२' ति२७i mभ्यात योन पन्त साये दीपसमुद्रानी पश्येथा Gsda ss'जेणेव जंबुदीवे जाव जेणेव असोगवरपायवे' या भूदीय હતું, તેમાં જ્યાં ભરતક્ષેત્ર હતું, તેમાં સુસુમારપુર નગરના અશેકવન ખંડ નામના ઉદ્યાનમાં આવેલ જે અશોકવૃક્ષ નીચે હું (મહાવીર પ્રભુ) તપસ્યા કરતું હતું, ત્યાં भारी पासे 'तेणेव उवागच्छइ' ते माव्य.. त्या भावी ' भीए' लयात શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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