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________________ भगवतीसूत्रे मिसिमिसेमाणे' यावत्-मिसमिसयन् कोपेन दन्तौष्ठदशनपूर्वकमिसमिस' इति अव्यकशब्दमुच्चारयन. यावत्करणात् 'मष्टे,कुविए चंडिक्किए' ति रुष्टः कुपितः चण्डिक्यितः, इति संग्राह्यम् , 'तिवलिअं' त्रिवलिकां त्रिवलियुतां रेखात्रयोपेताम् 'भिउडिं' भृकुटीम् भू विक्षेपं 'निडाले' ललाटे 'साहटु' संहृत्य कृत्वा 'चमरं असुरिंदै असुररायं' चमरम् असुरेन्द्रम् असुरराजम् ‘एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अवादीत्-हंभोः । चमरा ! हमिति अहङ्कारसूचकमव्ययम्, भोः ! चमर ! 'असुरिंदा ! असुरराया !' असुरेन्द्र ! असुरराज ! अपत्थिअपत्थिआ !' से वाणी के 'अकान्त, अप्रिय, अशुभ और अमनोज्ञ' ये पूक्ति चार विशेषण ग्रहण किये गये हैं। कुपित होते ही 'मिसिमिसेमाणे' उसे मिस मिसी छूटी-अर्थात् कोप से भरकर उसने अपने दांतों से ही अपने होठों को चबाते हुए और मिसमिस इस अव्यक्त शब्दका उच्चारण उसके मुख से निकलने लगा, यहां यावत् पदसे 'रु, कुविए, चंडिक्किए' इन पदोका संग्रह किया गया है 'तिवलियं' त्रिवलितीनरेखाओं से युक्त 'भिडिं भ्रकुटिको 'निडाले' ललाट पर 'साहटु' करके उस शक्रने 'चमरं असुरिंदं असुरराय' असुरेन्द्र असुरराज उस चमर से 'एवं वयासी' इस प्रकार कहा-'हं भो! असुरिंदा असुरराया चमरा' अरे ओ असुरेन्द्र असुरराज चमर ! 'अपत्थिय पत्थिया' मालूम देता है-आज मुझे तेरी मृत्यु ने ही यहां भेजा है अर्थात् मृत्यु जैसी अनिष्ट वस्तुको कोई भी नहीं चाहता है-परन्तु અકાન્ત, અપ્રિય, અશુભ, અરુચિકર, આદિ વાણીનાં વિશેષણે ગ્રહણ કરાયાં છે. 'जाव मिसमिसेमाणे ते अधथी धूम 20 गयो. तेले त ४ययाव्या भने tin नाय ४ ४२७या. मी यावत्' ५४थी ' रुटे, कुविए, चंडिक्किए' पहे। अ५ ४२।यां छ 'तिवलियं' त्र २मामाथी युत 'भिउडिं' श्रुटि 'निडाले माही पाणे याबीन मेटले पावशयी भ्रष्टि यावीत अशुटि यावती વખતે તેના કપાળમાં ત્રણ રેખાએ સ્પષ્ટ દેખાતી હતી, તે કથન દ્વારા તેને અતિશય ક્રોધ બતાવવાનું સૂત્રકારને આશય છે. આ રીતે श्रुटि ५वीन 'चमरं असुरिंदै असुररायं एवं क्यासी' तेथे मसुरेन्द्र, असु२००१ यभरने या प्रमाणे घु- हंभो ! असुरिंदा असुरराया चमरा' भरे. मे। असुरेन्द्र मसु२२।४ यभ२ ! 'अपस्थिय पत्थिया' भने तो मेमाणे छे भात तने અહીં મોકલે છે! તું મરવાની ઈચ્છાથી જ અહીં આવ્યા લાગે છે. મને એમ લાગે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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