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________________ - भगवतीसूत्रे पिधाय, तथैव संमानमुकुटविटपः, सालम्बहस्ताभरणः ऊर्च पादः अधःशिराः, कक्षागतस्वेदमिव विनिर्मुश्चन, तया उत्कृष्टया, यावत्-असंग्ख्येयानाम् द्वीपसमुद्राणाम मध्यं मध्येन व्यतिव्रजन्, यत्रैव जम्बूद्वीपः, यावत्-यत्रैव अशोकवरपादपः यौव मम अन्तिकस्तचैव उपागच्छति, भीतः,भयगद्गद्स्वरः 'भगवान् शरणम्' इति ब्रुवाणः मम द्वयोरपि पादयोः अन्तरे झटिति वेगेन समवपतितः॥०८॥ (झियायित्ता पिहापित्ता) ध्यान करके अर्थात् वह क्या हैं ऐसा विचार करके और स्पृहा करके (तहेव) उसी तरह से जिस क्षण में उसने विचार किया उसी क्षण में (संभग्गमुकुडविडए) उसके मस्तक का मुकुट टूट गया । अर्थात् जब वहां से चलने लगा तो उसका मुख अपने स्थान की ओर नीचा हो जाने के कारण उसका मुकुट टूट गया । (सालंबहत्याभरणे) उसके हाथों के आभरण नीचे की ओर लटक आये उपाए अहोसिरे) दोनों पैर उसके उँचे की ओर हो गये और शिर उसका नीचे की ओर हो गया (कक्खागयसेयं पिवविणिम्मुयमाणे) दोनों कक्षाओं में-कांखोंमें-से मानों उसके पसीना सा निकलने लगा। इस तरह की स्थिति से युक्त हुआ वह (ताए उक्किट्टयाए) उस देवसंबंधी उत्कृष्ट गति द्वारा (जाव तिरियमसंखेजाणं दीवसमु. हाणं मझं मज्जेणं वीईवयमाणे) यावत् तिर्यग्र असंख्यात द्वीप समुद्रों को उनके बीचों बीच से होकर पार करता हुआ (जेणेव जंबूदीवे जाव जेणेव असोयवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ) विया२ ध्या") (झियायित्ता पिहायित्ता) ७ ते त्यांची नासी पानी त पियार 10 30 घोडता, (तहेव) सभये (संभग्गमुकुडविडए) तेना भरत ५२ने। | મુગટ તુટી ગયે. એટલે કે જ્યારે તે ત્યાંથી પાછા ફરવા લાગે ત્યારે તેનું મુખ તેના स्थान त२६ नायु नभवाथी तन भुगट तूटरी गो. (सालंवहत्थाभरणे) तना डायना माभूषण नीयनी माटxt ani (उपाए अहोसिरे) मन्ने ५ स्या भने शि२ नीयु २ही आयु. ( कक्खागयसेयं पिव विणिम्मयमाणे) तनी मन्न બગલમાંથી જાણે કે પરસે છૂટવા લાગે. આ પ્રકારની જેની દુર્દશા થઈ છે એ ते यमरेन्द्र (ताए उकिट्टयाए) पोतानी Srge पतिथी (जाव तिरीयमसंखेजाणं दीवसमुदाणं मज्झं मज्जेणं वीईवयमाणे ) तियना असभ्य al समुद्रानी ध्येय ssti sstो भने भने पा२ ४२ते। ४२ (जेणेव जंबूदीवे जाव जेणेव असोयवरपायवे जेणेव ममं अंतिए तेणेव उवागच्छइ) न्यi भूदी५ , 'यावत्' या म क्ष नाय (महावीर प्रभु) भिक्षु प्रतिमानी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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