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________________ ४२२ भगवती सूत्रे 'वग्ग' वल्गति कूर्दति, 'गज्जइ' गर्जति - मेघवत् शब्द करोति 'हयहेसिअं करेड' यहूषितं करोति घोटकवत् षणां करोति 'हरिथगुलगुलाइअं करेइ' हस्तिगुलमुलायितं करोति, हस्तिवत् चीत्कारशब्दं करोति 'रहघणघणाइअं करेइ' रथघनघनायितं करोति रथवत् घनघनशब्दमुच्चारयति 'पायददरगं करेs' पाददर्दरक करोति चरणेन भूमिमाकुट्टयति 'भूमिचवेडयं दलइ भूमिचपेटां ददाति भूमिं कराभ्यामास्फोटयति 'सीहणादं नदइ' सिंहनाद नदति सिंहनाद' करोति 'उच्छोले ' उच्छलति अग्रतो मुखाचपेटां ददाति उत्फालनं करोति वा ऊर्ध्वमुत्पततीत्यर्थः 'पच्छोलेइ' प्रच्छलति पृष्टतो मुखां चपेटां ददाति ऊर्ध्वाधः पतति वा तिवई' त्रिपदीं त्रिपदिकम् 'छिंद' छिनत्ति त्रोटयति मल्लइव रङ्गभूमौ त्रिपदीच्छेद' करोति 'वामंभुअ' वामं भुजम् 'ऊसवेइ' उच्छ्रयति -ऊर्ध्वं प्रसारयति ' दाहिणहत्थ पये सिणीए हाथों को बांहोको भुजाओं को ठोका 'वग्गह' और कुंदा - ऊपर की ओर उछला 'गज्जइ' मेघ के समान उसने ध्वनि-गर्जना की। 'हय हे सियं करेह' घोडे की तरह वह हिनहिनाया 'हत्थिगुछगुलाइयं करेइ' हस्ती के समान उसने चीत्कार किया-अर्थात् हाथी के जैसा वह चिंघाड़ा 'रहघणघणाइयं करेइ' रथ के समान घन घन शब्दका उसने उच्चारण किया । पायदद्दरगं करेह' चरण से भूमिको ताडित किया अर्थात- दोनों पैरों को उसने जोर २से जमीन के ऊपर उठाकर पटका 'भूमिचवेडयं दलयह' हाथ से भूमि का आस्फालन किया 'सीहनादं नदह ' सिंहनाद किया अर्थात् शेर की तरह दहाडा अर्थात् गर्जा 'उच्छोलेइ' ऊंचे उछला 'पच्छोलेइ' ऊँचे से नीचे गिरा 'तिपदी छिंदइ' रंगभूमि में मलकी तरह उसने त्रिपदिका का छेदन किया 'वामं भुयं ऊसवे' बायें हाथको ऊपर पसारा दाहिणहत्थपदेसिणीए' दाहिने तेनी भन्ने लुलो पर थायटो लगावी; 'वग्गड़' ते उपरना मान्नु छजवा लाग्यो, 'गज्जइ' भेघना नेवी गना उरी, 'हयहेसिय' करेइ' ते घोडानी भेभ डडएयो, 'हत्थगुलगुलाrयं करेइ' ते हाथीना नेवा थी ४२ लाग्यो 'रहघणघणाइय केरड़ ' छोडतो रथ नेवी धनुधावाटी उरे छे भेवी धबुधगाटी ते १२वा लाग्यो 'पारगं करे' तेथे भन्ने भगने लेरथी ४भीन पर पटवा भांडया' भूमिचasi दल , तेथे तेना हाथ भीन उपर पछाडवा भांडया, 'सिंहनादं नदई ' तेथे सिडना देवी गर्भना उरी. 'उच्छोलेइ' ते अये उछज्यो. 'पच्छोलेइ' अथेथी नये हयो, 'तिपदों छिंद' ने महा रंगभूमिमां त्रियहीनुं छेन रे छे तेम તેણે ત્રિપદીનું છેદન કર્યું. वामं भूयं ऊसवेइ ' तेथे अमा हाथने अथा भ्यो, 6 , " 6 दाहिणहस्थपदेसिणीए ' જમણા હાથની તર્જની અને 9 अंगुणण શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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