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________________ भगवतीसूत्रे ध्यात्मिको यावत्-समुदपद्यत-एवं खलु श्रमणो भगवान महावीरो-जम्बूद्वीपे द्वीपे, भारते वर्षे, सुंसुमारपुरे नगरे, अशोकवनखण्डे उद्याने, अशोकवरपादपस्य अधः पृथिवी शिलापट्टके अष्टमभक्तं प्रगृह्य एकरात्रिकी महापतिमाम् उपसंपद्य विहरति ॥ ५. ६ ॥ टीका-चमरम्पति सामानिकदेवानां शक्रसमृद्धिविलासादि कथनानन्तरं तान् प्रति चमरोक्तिं भगवान गौतमं प्रतिपादयति-तएणं से चमरे' इत्यादि। ततः शक्रवृत्तकथनानन्तरं खलु स प्रसिद्धः चमरः ‘असुरिंदे' असुरेन्द्रः 'असुरको लगाया 'ममं ओहिणा आभोएई' तब उसने मुझे अवधिज्ञान से देखा (इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपजित्था) देखकर उसे इस प्रकारका आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि (एवं खलु समणं भगवं महावीरे जंबूदीवे दीवे भारहे वासे सुंसुमारपुरे नयरे असोयवरसंडे उज्जाणे असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिला पट्टयंसि अट्ठमभत्तं पगिणिहत्ता एगराइयं महापडिमं उवसंपजित्ताणं विहरइ) श्रमण भगवान महावीर जंबूद्वीप नामके द्वीपमें स्थित भारतवर्ष में वर्तमान सुंसुमार नगरमें रहे हुए अशोकवन खंड उद्यान में श्रेष्ठ अशोकवृक्ष के नीचे पृथिवी शिलापट्टके ऊपर अष्टमभक्त को धारण करके एकरात प्रमाणवाली भिक्षु प्रतिमाको धारण किये हुए है। टीकार्थ—सामानिक देवेने जब चमर से शक्रकी समृद्धि और उसके विलास आदिका कथन किया-तब उसके बाद चमरने जो उनसे कहा. उसे भगवान् गौतम से कहते है-'तएणं से चमरे इत्यादि । ज्यो. (ममं ओहिणा आभोएइ) मने तो अवधिज्ञानथी भने (मडावीर प्रभुने यो (इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्झित्था) भने न तेन भनमा मा प्ररने यामि, यिन्तित, दियत, प्रथित, मनोगत ६५ ५-न थयो. (एवं खलु समणं भगवं महावीरे जंबूदीवे दीवे भारहे वासे सुसुमारपुरे नयरे असोयवरसंडे उज्जाणे असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि अट्ठमभत्तं पगिहित्ता एगराइयं महापडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरइ) श्रममावान महावीर, भूद्वीप नामना દ્વીપના ભરતક્ષેત્રમાં, (ભારતવર્ષમાં) સુંસુમારપુર નગરના અશેકવનખંડ ઉદ્યાનમાં શ્રેષ્ઠ અશોકવૃક્ષની નીચે શિલાપટ્ટક ઉપર અઠમની તપસ્યા કરીને એક રાત્રિ પ્રમાણવાળી ભિક્ષુ પ્રતિમાની આરાધના કરી રહ્યા છે. ટીકાથ-જ્યારે સામાનિક દેએ શકેન્દ્રની દેવદ્ધિ તથા ભોગવિલાસ આદિની વાત ચમરેન્દ્રને કહી ત્યારે અમરેન્દ્ર શું કહ્યું તે સૂત્રકારે આ સૂત્રમાં બતાવ્યું છે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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