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________________ ३८२ भगवतीसगे छाया--तस्मिन् काले, तस्मिन् समये चमरचञ्चाराजधानी अनिन्द्रा, अपुरोहिता चापि आसीत् ततः स पूरणो बालतपस्वी, बहुप्रतिपूर्णानि द्वादशवर्षाणि पर्याय पालयित्वा मासिक्या संलेखनया आत्मानं जूषित्वा षष्ठिं भक्तानि अनशनेन छित्वा कालमासे कालं कृत्वा चमरचश्चाया राजधान्याः उपपानसभायाम् यावत्इन्द्रतया उपपन्नः, ततः स चमरोऽसुरेन्द्रः, असुरराजः अधुनोपपन्न: (तेणं कालेणं तेणं समएणं) इत्यादि । सूत्रार्थ-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) उस काल और उस समय में (चमरचंचारायहाणी) चमरचंचा नामकी राजधानी (अणिदा) विना इन्द्र के थी (अपुरोहिया यावि होत्था) और विना पुरोहित के भी थी (तएणं से पूरणे बालतवस्सी) वह बालतपस्वी पूरण (बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाई) ठीक १२ बारह वर्षतक (परियागं पाउणित्ता) दानामा प्रव्रज्या पर्याय को पालन करके (मासियाए) एक मास की (संलेहणाए) संलेखना से (अत्ताणं जूसेत्ता) स्वयं आत्मा को युक्त कर के (सहि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता) एवं अनशनतप द्वारा ६० भक्तों का छेदन करके (कालमासे कालं किच्चा) काल अवसर काल करके (चमरचंचाए रायहाणीए) चमरचंचाराजधानी की (उववाय सभाए) उपपात सभा में (जाव इंदत्ताए उववन्ने) यावत् इन्द्रको पर्याय से उत्पन्न हुआ। (तएणं से असुरिंदे असुरराया चमरे अहुणोववन्ने पंचविहाए पजत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छई) असुरेन्द्र असुरराज उस ताजे उत्पन्न हुए चमरने (तेणं काणंले तेणं समएणं) त्याह सूत्राथ-(तेणं कालेणं तेणं समएणं) ते णे भने ते समये (चमरचंचा रायहाणी) यभरया नामनी घानी (अर्णिदा अपुरोहिया यावि होत्था) धुन्द्र मने पुलित विनानी ती. (तएणं से पूरणे बालतवस्सा) ते मालतपस्वी ५२९ (बहु पडिपुण्णाई दुवालसवासाइं) पराम२ मा२ वर्ष सुधा (परियागं पाउणित्ता) हानामा अनन्या पर्यायर्नु पासन शन (मासियाए) मे भासना (संलेहणाए अत्ताणं जूसेत्ता) सयाराथी पोताना आत्मानुं शोधन शन (सहि भत्ताइंअणसणाए छेदित्ता) मे भासन Suस द्वारा साना माहानी परित्याग ४शन(कालमासे कालं किच्चा) मृत्युन मसर सावता यम पामीन (चमरचंचाए रायहाणीए) यभस्य या राधानानी (उववायसभाए) Sunात समामा (जाव इंदत्ताए उववन्ने) छन्द्रनी पर्याय ५न्न थयो. (तएणं से अमुरिंदे असुरराया चमरे अहुणोक्वन्ने पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तिभावं गच्छइ) मा शत छन्द्रनी पर्याय स्पन्न थयेा ते मसुरेन्द्र અસુરરાજ ચમરે પાંચ પ્રકારની પર્યાપ્તિ પ્રાપ્ત કરી અને તે પર્યાપ્તક દશાથી યુકત શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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