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________________ प्रमेयचन्द्रिकाटीका श. ३ उ. २ सू.४ चमरेन्द्रस्योत्पातक्रियानिरूपणम् ३७७ खण्डमुद्यानम् यौव पृथिवीशिलापट्टकः, तत्रैव उपागच्छामि उपगत्य अशोकवरपादपस्य अधः पृथिवी शिलापट्ट के अष्टमभक्तं परिगृह्णामि, द्वौ अपि पादौ संहृत्य प्रलम्बितपाणिः, एकपुद्गलनिविष्टदृष्टिः अनिमिषितनयनः, ईषत् प्राग्भारगतेन कायेन यथा प्रणिहितैः गात्रैः सर्वेन्द्रियैः गुप्तः: एकरात्रिकी महाप्रतिमाम् उपसंपध विहरामि। जेणेव असोयवरपायवे) जहां सुंसुमारपुर नगर था, जहां अशोकवन खंड उद्यान था, जहां अशोक का श्रेष्ठ वृक्ष था (जेणेव पुढवीसिलापट्टओ) जहां पृथिवी शिला पट्टक था, (तेणेव उवागच्छामि) वहीं पर आया । (उवागच्छित्ता) वहां आकरके (अशोकवरपायवस्स हेडा) अशोकवृक्षके नीचे मैने (पुढवीसिलावट्टयंसि ) पृथिवी शिलापट्टक पर खडे होकर (अट्ठमभत्तं परिगिहामि) अट्ठमका तप धारण किया (दो वि पाए साह) दोनों पैरों को मैंने उस समय आपसमें संकुचित कर लिया था (वग्धारियपाणी) तथा दोनों हाथ नीचे लटके हुवे थे (एक पोग्गलनिविठ्ठदिट्ठी) मात्र एक पुद्गल के ऊपर हो दृष्टिको निश्चल की थी, (अणिमिसणयणे) निमेष रहित नेत्र थे (ईसिंपन्भार गएणं कारणं) शरीर आगेकी ओर झुका हवा था (अहा पणिहिएहि गत्तेहिं, सव्वेदिएहिं गुत्तेहिं) शरीरके समस्त अवयव निश्चल थे, समस्त इन्द्रियों गुप्त थीं. ऐसा होकर मैंने (एगराइयं महापडिमं उपसंपज्जेत्ताणं विहरामि) एकरात्रि की प्रमाणवाली महाप्रतिमा को धारण किया । जेणेव असोयवरपायवे) न्या सुसुभा२५२ ना तु, या भवन नामना धान हतो orii अनु श्रेष्ठ वृक्ष तु, (जेणेव पुढवीसिलापट्टओ) या पृथ्वी शिक्षा ५४ हता, (तेणेव उवागच्छामि) त्या मावी पांच्य।. (उवागच्छित्ता) त्यi orva (अशोकवरपायवस्स हेटा) में वृक्षनी नीये (पुढवीसिलावट्टयंसि) पृथ्वी शिक्षा पट्ट४ ५२ मा २हीने (अट्ठमभत्तं परिगिहामि) सहभर्नु तप धारण यु: (दो वि पाए साहट्ट) त्यारे में मन्ने पाने मे मlon सा2 Daln उता (वग्धारियपाणी) भा२। मन्नाथनीय ८४ता ता (एकपोग्गलनिविट्ठदिट्टी) मे ४ पुस ५२ द्रष्टि निश्वत ४३री ती, (अणिमिसणयणे)भारी मामा मनिष (५४ाराथी २डित) ती, (इसि पब्भारगएणं कारणं) शरीरनी सानी माणसे नमे तु (अहापणिहिएहिं गत्तेहिं, सव्वेदिएहिं गुत्तेहि) शरीरन। सघi अqयवे। निश्वर तi मने समस्त धन्द्रिय शुस ती. (एगराइयं महापडिमं उपसंपज्जेत्ताणं विहरामि) मा शत में ये ४ २.त्रिना प्रभावामा मडाप्रतिमा मी४२ ४२री. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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