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________________ ३३४ भगवतीसूत्रे इत्यादि । हे भगवन् ! 'केवइयें च णं' कियच्च खलु कियदवधिकं 'ते' तेषाम् अमरकुमाराणां देवानाम् ' अहे गतिविसये ' अधोगमनविषयकम् 'पभूतं' प्रभुत्वम् सामर्थ्यम् 'पण्णत्ते' प्रज्ञप्तम् कथितम्, कियदधोलोकपर्यन्तं ते गन्तुं समर्थाः ? इति प्रश्नः । भगवानाह - ' गोयमा ! जाव - अहे ' इत्यादि । हे गौतम ! ते असुरकुमाराः 'जाब - अहे' यावत् - अधः 'सत्तमाए पुढवीए सप्तम्याः पृथिव्याः, अर्थात् स्वस्थानात् अधः सप्तमपृथिवीलोकपर्यन्तं गन्तुं समर्थाः, गमनशक्ति मात्रमेतत्प्रतिपादितम् नतु कदाचित् तत्पर्यन्तं गताः, गच्छन्ति, गमिष्यन्ति वा किन्तु 'तच्च' तृतीयां पुनः 'पुढविं' पृथिवीं ' गयाय ' गताश्च " मार देवों में अपने स्थान से अधोगमन करने की शक्ति अवश्य ही है। जब प्रभु के मुख से 'असुरकुमार देवों में अधोगमन करने की शक्ति अवश्य ही है' इस बात को सुना तब प्रभु से उन्होंने पुनःपूछा कि ' केवइयंच णं पभू असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविस पण्णत्ते' हे भदन्त ! उन असुरकुमार देवोंकी शक्ति नीचे जाने की कहांतक की है ? इस प्रश्न का आशय यह है कि असुरकुमार देव अपने स्थान से नीचे कहां तक जा सकते हैं ? इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैं कि- 'गोयमा ! जाव अहे सत्तमाए पुढवीए' हे गौतम ! उन असुरकुमार देवों में अपने स्थान से नीचे जाने की शक्ति इतनी है कि वे सप्तम पृथिवी तक जा सकते हैं । परन्तु वहाँतक वे आजतक गये नहीं है न जाते हैं और न आगे भी जायेंगे । यह तो केवल वहां तक जाने की शक्तिमात्र का प्रतिपादन किया है । वे तो 'तच्चं पुढवि गया य गमिस्संति य' तृतीय पृथिवीतक ही जाते हैं, पहिले भी वहींतक गये हैं और त्यारे गौतम स्वामी जीले प्रश्न पूछे छे - " केवइयं च णं पभू ते असुरकुमाराणं देवाणं अहे गतिविसर पण्णत्ते ? " हे अलो ! मसुरकुमार देवो तेभना સ્થાનથી કયાં સુધી નીચે જઇ શકે છે? ત્યારે મહાવીર પ્રભુ જવાબ આપે છે— " गोयमा ! जाव अहे सत्तमाए पुढवीए " हे गौतम! ते असुरकुमार देवो नीचे સાતમી પૃથ્વી સુધી સાતમી નરક સુધી જવાને સમર્યાં છે, પણ તેઓ ત્યાં સુધી ભૂતકાળમાં કદી ગયા નથી, વમાનમાં જતા નથી અને ભવિષ્યમાં જશે પણ નહીં. तेभनुं सामर्थ्य मताववाने भाटे ४ उपरेति उथन यु ं छे. " तच्चं पुढर्वि गया य गमिस्संति य ૧ પરંતુ તેઓ ખરેખર તેા ત્રીજી પૃથ્વી સુધી ભૂતકાળમાં ગયા હતા, વત માનમાં જાય છે અને ભવિષ્યમાં પણ ત્રીજી પૃથ્વી સુધી જ જશે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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