________________
पमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. २९०१ भगवत्समवसरणम् चमरनिरूपणश्च ३१९ व्याः सौधर्मस्य कल्पस्य अधो यावत्, अस्ति भगवन् ? ईषत्मागभारायाः पृथिव्याः अधोऽसुरकुमाराः देवाः परिवसन्ति ? नायमर्थः समर्थः अथ कुत्र पुनर्भगवन् ! अमुरकुमाराः देवाः परिवसन्ति ? गौतम ! अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः अशीत्युत्तरयोजनशतसहस्रबाहल्यायाः- एवम् असुरकुमारदेववक्तव्यता, यावत् दिव्यान् भोगभोगान् भुञ्जाना विहरन्ति, अस्ति भगवन् ! असुरकुमाराणां अहे सत्तमाए पुढवीए, सोहम्मस्स कप्पस्स अहे जाव) इसी प्रकार से सप्तम पृथिवी के नीचे भी असुरकुमार देव नहीं रहते हैं। सौधर्म से लेकर और यावत् दूसरे कल्पों के भी नीचे असुरकुमार देव नहीं रहते हैं। (अस्थि णं भते । ईसिप्पन्भाराए पुढवीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसंति ) हे भदंत । जो ईषत्प्रारभारा पृथिवी है क्या उसके नीचे असुरकुमार देव रहते हैं ? (णो इणटे सम?) हे गौतम यह भी अर्थ समर्थ नहीं है। (से कहिं खाइ णं भंते ! असुरकुमारा देवा परिवसंति) तो फिर हे भदंत ! असुरकुमार देव कहां रहते हैं ? ( गोयमा !) हे गौतम ! ( इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसय सहस्स बाहल्लाए एवं असुरकुमार देववत्तव्वया) एक लाख ८० हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभा पृथिवी है उसके अन्तराल में असुरकुमार देव रहते हैं। यहां पर असुरकुमारों संबंधी समस्त वक्तव्यता कहनी चाहिये। (जाव दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरांति) यावत् वे दिव्यभोगोंको भोगते सोहम्मस्स कप्पस्स) से प्रभारी सातमी पृथ्वी (न२४) पय-तनी पर પૃથ્વીની નીચે અસુરકુમાર દે રહેતા નથી. સૌધર્મ દેવકથી લઈને કેઈપણ દેવसोनी नाय ५] तमे रहेता नथी. (अस्थि णं भंते ! ईसिप्पन्भाराए पुढवीए भहे असुरकुमारा देवा परिवसंति) महन्त ! शु मसु२/भार ४५प्रा२॥ पृथ्वीनी नीय २७ छ ? (णो इणट्टे समझे) गौतम । मे पात पण म२।१२ नथी. (से कहिंखाइणं भंते ! असुरकुमारा देवा परिवसंति ?) तो महन्त ! मसुरभा२ हेवे। ४यां २९ छ ? (गोयमा !) 3 गौतम! इमीसे रयणप्षभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए - एवं असुरकुमार देववत्तव्यया) એક લાખ એંસી હજાર યોજન પ્રમાણવાળી આ રત્નપ્રભા પૃથ્વીની મધ્યમાં અસુરशुभार देव। २ छ. मी मसुभातुं समस्त पान ४२ मे. (जाव दि. बाई भोगभोगाई भुंजमाणो विहरंति) मे हिव्य लोगो लोग छ भने मान
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩