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________________ २८९ म. टी. श. ३ उ. १ सू. २७ ईशानेन्द्रशक्रेन्द्रयोर्गमनागमननिरूपणम् ईशानं देवेन्द्रम् आहानपूर्वकमेव समभिलोकयितुं समर्थः न तु अनाहानपूर्वकम् किन्तु ईशानो देवेन्द्रः शक्रम् आह्वानपूर्वकम् अनाह्नानपूर्वकञ्च समभिलोकयितुं समर्थ इति भावः । 'पभ्रूणं भंते' प्रभुः खलु भदन्त ! हे भगवन् ! 'सक्के देविंदे देवराया' शक्रः देवेन्द्रः देवराजः ' इसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा सद्धि " ईशानेन देवेन्द्रेण देवराजेन सार्धम् 'आलावं वा सलावं वा आलापं वा संलापं वा वार्तालापम्, आलापम् संभाषणम् संलापं पुनः पुनः संभाषणम् 'करेत्तए' कर्तुम् 'पभू' प्रभुः समर्थः ? किम् ? , 'हंता, गोयमा ! हे गौतम । हन्त सत्यम् 'जहा पाउन्भवणा' यथा प्रादुर्भावना यथा पूर्वक ही देख सकते है विना आह्वान के नहीं - तात्पर्य इसका यही हैं कि देवेन्द्र शक्र यदि ईशान से मिलना चाहे तो वह पहिले उनसे मिलने का समय लेगा. तब ही मिल सकेगा, विना सूचना या खबर दिये नहीं मिल सकते है । किन्तु ईशान ईन्द्रके लिये शक्रसे मिलनेके निमित्त ऐसा नियम नहीं है । वह उनसे सूचना देने पर भी मिल सकते है और नहीं सूचना देने पर भी मिल सकते है । जब उनकी इच्छा हो तभी वह शक्र से मिलने का समय ले सकते 4 , । पुनः प्रभु से गौतम पूछते है कि- 'भंते । सक्के देविंदे देवराया' हे भदन्त । देवेन्द्र देवराज शक्र 'इसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा सद्धि' देवेन्द्र देवराज ईशान के साथ 'आलावं वा संलावं वा करेत्तए पभू णं' जब चाहे तब वार्तालाप कर सकते है क्या ? एक बार बातचीत करना इसका नाम आलाप है और बारबार बातचीत करना इसका नाम संलाप है । 'हंता गोयमा' हां गौतम । जहा पाउन्भवणा શક્ર દેવેન્દ્ર ઇશાનને મળવા (જોવા) માગતા હાય તે આમત્રણ પૂર્વક જ મળી શકે છે. એટલે કે દેવેન્દ્ર શજો દેવેન્દ્ર ઇશાનને મળવા માગે તા પહેલાં તે તેને મળવાના સમય માગીને જ મળી શકે છે. સૂચના અથવા ખબર આપ્યા વિના મળી શકતા નથી. પણ શાનેન્દ્રને માટે એવો કોઇ નિયમ નથી. ઇશાનેન્દ્ર તેા સૂચના આપ્યા વગર પણ શક્રેન્દ્રને મળી શકે છે. જ્યારે તેને મન થાય ત્યારે તે શક્રેન્દ્રને મળી શકે છે. प्रश्न "भंते ! सक्के देविंदे देवराया" हे महन्त ! शु शडेन्द्र देवरान "ईसाणेणं देविंदेणं देवरण्णा सद्धि" शकेन्द्र देवराम ईशाननी साथै " आलावं वा संला वा करेत्त पभू ?" न्यारे आहे त्यारे वार्तालाप उरी शडे छे ? ! वार वातशीत रवी तेनुं नाम 'ससाय' (संवाद) छे. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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