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________________ भगवतीसूत्रे -विहरति, एवं महर्दिकः, यावत्-महानुभागः, एतावच प्रभुः विकुर्वितुम्, तद् यथानाम-युवति युवा हस्तेन हस्ते गृह्णीयात्, चक्रस्य वा नाभिः अरकायुक्ता (अरकोत्तासिता) स्यात्, एवमेव गौतम ! चमरः असुरेन्द्रः, असुरराजो वैक्रियसमुदघातेन समवहन्ति,संख्येयानि योजनानि दण्डं निःसृजति, तद्यथा यावतरिष्टानां यथा बादरान् पुग्दलान् परिशातयति,प्रतिशात्य यथा सूक्ष्मान् पुग्दालान् देवों का अधिपतित्व भोगता हुआ (जाव विहरह) यावत् विचर रहा है। ( एवं महिडिए जाव महाणुभावे) इस प्रकारसे वह चमर बहुत बड़ी ऋद्धिवाला है यावत् बहुत बड़े भारी प्रभाववाला है। (एवतियं च णं पभू विउवित्तए) तथा वह विकुर्वणा करने के लिये ऐसा ममर्थ है (से जहानामए जुवतिं जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा) जैसे कोई युवान पुरूष युवती स्त्री के हाथ को अपने हाथ से, पकड़नेमें समर्थ होता है ( चक्कस्स वा नाभी अरगा उत्तासिया) अथवा चक्रकी नाभि अरकों के साथ संबद्ध रहती हुई मालूम पड़ती है। ( एवामेव गोयमा ! चमरे असुरिंदे असुरराया वेउब्विय समुग्घाएणं समोहन्नइ) इसी प्रकार असुरों का इन्द्र और असुरों का राजा वह चमर वैक्रियसमुद्वातसे समवहत होता है। (संखेन्जाई जोयणाई दंडं निसिरह) संख्यातयोजनतक वह पहिले अपने आत्मप्रदेशों को दण्डाकार बनाता है ( ते रयाणाणं जाव रिद्वाणं जैसे रत्नोंका यावत् रिष्टरत्नोंका फिर (अहाबायरे पोग्गले परिसाडेइ) देवानुमाधिपत्य(स्वाभीपा) लागवेछ. (जाब विहरइ) मारीते ते त्या २९ छ. (एवं महिडिए जाब महाणुभावे) मा रीतेत मा ऋद्धिथी ने माप पय-तना विशेष पा (एवतियं च णं पभू विउवित्तए) ते विgu ४२वा. भाटे मेवी समर्थ छ 3 ( से जहानामए जुवति जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेजा) જે કઈ યુવાન પુરુષ કેઈ યુવાન સ્ત્રીને હાથે પિતાના હાથથી પકડવાને સમર્થ हाय छे, (चक्कस्स वा नाभी अरगा उत्तासिया) पीनी घरी यन पोताना साथ रामपाने समय होय छे (एवामेव गोयमा! चमरे अमुरिंदे असुरराया वेउब्धिय समुग्धाएणं समोहनह) सन प्रमाणे असुशनी २001 मने मसुरेन्द्र यभ२ वायसमुधातथा युत हाय छ. (संखेज्जाइं जोयणाई दण्ड निसिरइ) ते पडसा सध्यात योन। पर्यन्त पोताना मात्मप्रशाने ६४१२ नावे छे. (तं रयणाण जाव रिहाणं सतन २त्तथी भांडीने रिटरन सुधीनस १६ प्रनय रत्नानां अहारायरे पोऽग्गले परिसाडेइ) यथाम.६२ पुगताने छाडी छे. त्या२ मा શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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