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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३. उ. १ सू. २१ तामलीकृतपादपोपगमनम् संगतिकांश्च आपृछ्य ताम्रलिप्त्या नगर्याः मध्यं मध्येन निर्गत्य पादुकाम्, कुण्डिकादिकम्, उपकरणम्, दारुमयञ्च प्रतिग्रहकम्, एकान्ते एडयित्वा ताम्रलिप्तीनगर्याः उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे निर्वर्तकं मण्डलकम् आलिख्य संलेखना - जूपणाजूपितस्य भक्त - पान प्रत्याख्यानस्य पादपोपगतस्य, कालम् हुई है ऐसे पुरुषों से, ( पासंडत्थे य) पाखंडस्थ पुरुषों से (गिहस्थे य) गृहस्थ पुरुषों से ( पुत्र संगइएय) पूर्वके परिचित पुरुषोंसे ( पच्छा संगा इए य) पश्चात् के परिचित पुरुषों से (पज्जायसंगइए य) समानकाल में प्रव्रज्या पर्याय से युक्त पुरुषोंसे ( आपुच्छित्ता) पूछकर (तामलित्तीए नगरीए मज्झं मज्झेणं निग्गच्छित्ता ) ताम्रलिप्त नगरीके ठीक बीचों बीचसे निकल कर ( पाउगं) पादुकाओंको ( कुंडियामादीय उवगरणं ) कुण्डिका आदि उपकरणोंको (दारुमयं च पडिग्गहियं एते अडित्ता) और दारुमय पात्रों को एकान्त में रखकर (तामलित्तीए नयरीए उत्तर पुरस्थिमे दिसिभाए) ताम्रलिप्ती नगरी के ईशान कोण में ( नियतणिय मंडल' आलिहित्था संलेहणा जूसणा जूसियस्स भत्तपाणपडियाहक्खियस्स पाओवगयस्स काल अणवकखमाणस्स विहरित) निर्वर्तनिक मंडल मांडकर सल्लेखना तप द्वारा आत्माका शोधन करते हुए चारों प्रकार के आहार का परित्याग कर पादपोपगमन संथारा धारण करके स्थेय) (विशिष्ट धर्मने धारण ४२नार) पुरुषाने, ( गिरस्थे य ) गृहस्थ पुरुषाने, (goansg a) ya' uklua yada, (qzı işç¶) monal dal 2118 परियय थयो छे सेवा व्यक्तियोने, (पज्जाय संगइएय) तथा सभासिन प्रवन्याधारी व्यक्तिने (आपुच्छित्ता) पूछीश - पाहयेोपगमन संथारो थड ४२वानी भारी ४२छा तेभनी पासे व्यक्त उरीश (तामलित्तिए नगरीए भज्झं मज्झेणं निगच्छित्ता) त्यार माह ताम्रलिप्ती नगरीनी वस्येथी नीडजीने ( पाउगं कुंडीयामादीय उवगरणं) याहुआ', डेन्डिडा यहि उ५४२, ( दारुमयं च पडिग्गहियं एगंते एडित्ता ) तथा अष्ठनिर्मित पात्रोने मे स्थाने भूडीने (तामलित्तीए नयरीये उत्तरपुरथिमे दिसिभा) ताम्रलिप्ती नगरीना ईशान(शुभां (नियत्तणियं मंडलं आलिहित्था संलेहणा - जूमणा जूसियम्स भतपाणपडियाइक्खियस्स पाओवगयस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए) रेखाथी क्षेत्र प्रभाणुनी भर्याहा माझेजीने સલેખના તપ (સથાર() દ્વારા આત્માની શુદ્ધિ કરીશ. ચારે પ્રકારના આહારના પરિત્યાગ કરીને, પાપાપગમન સંથારો કરીને હું બિલકુલ નિષ્ક્રિય અની જશે. શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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