________________
भगवतीसूत्रे यावत्-समुदपद्यत, एवं खलु अहम् अनेन उदारेण, विपुलेन, यावत्-उदग्रोण, उदात्तेन, उत्तमेन, महानुभागेन, तपाकर्मणा शुष्का, रूक्षो यावत्-धमनीसन्तो जातः, तद् अस्ति यावत् मम उत्थानम् कर्म, बलम्, वीर्यम्, पुरूषकार पराक्रमः, तावत् मम श्रेयः-कल्पे यावत्-ज्वलति, ताम्रलिप्त्याः नगर्याः दृष्टभाषितांच, पाखण्डस्थांश्च गृहस्थांश्च, पूर्वसंगतिकांश्च, पश्चात्संगतिकांच, पर्यायथा और बार २ वह उसी रूपमें उसे स्मरणमें आने लगा अतः उसे चिन्तितरूपमें प्रकट किया गया है। 'कप्पिए पत्थिए मणोगए' इन तीन पदोंका यहां यावत् शब्दसे संग्रह हुआ है(एवं खलु अहं इमेणं
ओरालेण विउलेण जाव उदग्गेणं) मैं इस उदार विपुल यावत् उदग्र (उदत्तणं उत्तमेण महाणुभागेण तवोकम्मेणं) उदात्त; उत्तम, महाप्रभाव वाले तपाकर्मसे (सुक्के लुक्खे जाव धमणिसंतए जाए) शुष्क हो गया हूं, रूक्ष हो गया हूं यावत् शिराएँ (नसे) समस्त मेरी बाहर निकल आई हैं (तं अस्थि जामे उढाणे, कम्मे, बले, वीरिये, पुरिसकारपरक्कमे) इस लिये जबतक मुझमें उत्था है; कर्म है, बल है, वोर्ग है, और पुरुष कार पराक्रम है, (तावता) तबतक (मे सेयं) मेरी भलाई इसीमें हैं कि मैं (कल्लं) कल (जावजलंते) प्रातःकाल होती ही यावत् सूर्य के उदय हो जाने पर (तामलित्तीए नयरीए) ताम्रलिप्ती नगरी में जाकर (दिट्ठा भट्टेय) वहाँके पूर्वमें देखे हुए तथा पूर्वमें जिनके साथ बातचीत की તે વિચાર તેના મનમાં વારંવાર આવવા લાગ્યો તેથી તેને માટે ચિન્તત વિશેષણ १५यु छ. "कप्पिए, पत्थिए, मणोगए" मे ३ विशेष! मी " यावत् પદથી ગ્રહણ કરાયાં છે. તેનું તાત્પર્ય એ છે કે આ પ્રકારનો આધ્યાત્મિક, ચિંતિત, पित, प्राति भने भने त विया तेने भाव्या (एवं खलु अहं इमेणं ओरालेणं विउलेणं जाव उदग्गेणं) AL SER, विधुर, ६ (उदत्तणं उत्तमेणं महाणुभागेणं तवोकम्मेणं) Sत्त, उत्तम भने मामाजी तपस्याथी (सुके लुक्खे जाव धमणिसंतए जाए) भा३ शरीर सू४ गयु छ, भने शरी२ मे मधु हुमणु ५४ी आयु छ धा नसो पा२ हेमा हामी छ. (तं अत्थि जामे उहाणे, कम्मे बले, वीरिये, पुरिसक्कारपरक्कमे ) तो नयां सुधी भा२मा उत्थान मण, भ, वाय मने ५३५४२ ५।भनी समाव छ तावता त्यां सुधाभा(मेसेय) नीय शव्या प्रमाणे पापापमान सथा। ४२वामा । भा३ श्रेय मागे (कल्लं) | वे (जाव जलंते) प्रात: थता सय थतi ( तामलित्तीए नयरीए)
तावित नगरीमा ४४.. (दिट्ठा भट्टे य) त्या पूर्व या पुरुषान, (पासंड
श्री. भगवती सूत्र : 3