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________________ १७२ भगवतिसूत्रे रक्तरत्नसत्सारस्वापतेयेन अतीव अतीव अभिवर्धे, तत् किम् अहं पुरा पुराणानां मुचीर्णानाम्, यावत्-कृतानाम्, कर्मणाम् एकान्तशः क्षयम् उपेक्षमाणो विहरामि, तद्यावत्-तावत् अहं हिरण्येन वध, यावत्-अतीव अतीव अभिवर्धे, कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिलपवालरत्त-रयण संतसार सा. वएज्जेणं अईव अईव अभिवामि) इसीसे मैं हिरण्य चांदीसे बढ रहा हूं, सुवर्ण से बढ रहा हूं, धनसे बढ़ रहा है, धान्य अनाजसे बढ रहा हूं, पुत्रोंसे बढ रहा हुई, पशुओंसे गाय भैस-आदिसे बढ रहा हूं, इस तरह मैं विपुल धन से, कनक से रजतसे मणिसे मौक्तिकों से. शंख से, चन्द्रकान्त आदि मणियों से प्रवाल से, तथा सत्सार वाले धन से खूब२ बढ रहा हूं। (तं किं जं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जाव कडाणं कम्माणं एगंत सोखयं उवेहमाणे विहरामि ) इस तरह पूर्वोपार्जित शुभकर्मों के उदय से मुझ पर लक्ष्मी देवी आदि की हर तरह से कृपा बनी हुई है, अतः ऐसी स्थिति में क्या मैं पूर्वकृत उन सुन्दररूप से आचरित किये गये यावत् कृत शुभकर्मो का एकान्ततः विनाश उपेक्षित कर सकता हूं अर्थात् नहींकर सकता हूं तात्पर्य कहने का यह है कि मैं इतने प्राप्त इस वैभवसुख में संतुष्ट बनारह कर भविष्यत्काल संबंधी सुख प्राप्ति के प्रति उदासीन बनजाउं यह मुझे कथमपि उचित नहीं है। (तं जाव ताव अहं हिरविपुल धण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय - संख - सिलपवालरत्तरयण संतसार सावएज्जेणं अईव अईव अभिवामि) तेथी भारे त्यो यिनी तथा सुवाना વધારો થયા કરે છે, ધન અને ધાન્યનો વધારે થયા કરે છે, પુત્ર વધતા જાય છે, ગાય, બળદ આદિ પશુઓની સંખ્યા પણ વધી રહી છે, એ જ રીતે મારે ત્યાં ધન, કનક, ચાંદી, મણિ, મેતી, શંખ, ચન્દ્રકાન્ત આદિ મણિયે, પરવાળાં વગેરે અતિશય भूक्ष्यवान धनी वृद्धि थडी छे. (तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जाव कडाणं कम्माणं एगंतसोखयं उवेडमाणे विहरामि) २पूर्वापानित શુભ કર્મોના ઉદયથી મારા પર લક્ષ્મીદેવી આદિની કૃપા થઈ છે. તે શુ પૂર્વક્રત સુંદર રીતે આચરેલાં, અને ભવિપાકવાળા તે શુભકર્મોના વિનાશની ઉપેક્ષા કરવી તે ગ્ય છે ! કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે અત્યારે મળેલા સુખવૈભવથી સંતોષ પામીને नवियना सुभ प्रत्ये SEसीनता मी ते भने शाम नथी. (तंजाव ताव अहं શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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