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प्रमेयचन्द्रिका टीका श.३ उ. १ इशानेन्द्रस्य दिव्यदेवऋद्धिनिरूपणम् १५३ चित्रचञ्चलकुण्डलविलिख्यमानगण्डः, यावत्-दशदिशाः उद्घोतयन् , प्रभासयन् , ईशाने कल्पे ईशानावतंसके विमाने, यथैव राजप्रश्नीये यावत-दिव्यां देवद्धिम् , यावत्-यामेव दिशं प्रादुर्भूतः, तामेव दिशं प्रतिगतः, 'भगवन् ' ! इति, भगवान् गौतमः श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, एवम्-अवादीजो धारण किये हुए था (आलईयमालमउडे) मालाओं से युक्त मुकुट जिसके मस्तक पर शोभित हो रहा था-(नव हेमचारुचित्तचंचल कुंडलविलिहिजमाणगंडे) दोनों कपोल मंडल जिसके नवीन सुवर्णसे रचित सुन्दर विचित्र चंचलकुडलोंकी रगड़से चमक रहे थे (जाव दसदिसाओ उज्जीवेमाणे) यावत् दश दिशाओंको प्रकाशित करता हुआ (पभासे माणे) उन्हें अपनी प्रभासे चमकीली बनाता हुआ ईशानकल्पमें (ईसाणवडिसए विमाणे) ईशानावतंसक विमानमें (जहेव रायप्पसेणइज्जे)राजप्रसेनीय उपांगमें कहे अनुसार (जाव दिव्वं देविड़ि) यावत् दिव्य देवर्द्धिको भोगता (जाव जामेव दिसिं पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए) यावत जिस दिशासे प्रकट हुआ था उसी दिशामें पीछे चला गया (भंते ! त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीर वंदइ नमसइ एवं वयासी) हे भदंत ! इस प्रकार से प्रभुको संबोधित करके भगवान गौतमने उन श्रमण भगवान महावीर को वंदना की. नमस्कार किया । वंदना नमस्कार करके फिर उन्हों ने प्रभु से इस निम वस्त्रो धा२९४ ४ा तi, ( आलइयमालमउडे ) भाकामाथी युत भुगः न भाया ५२ शामतो तो, ( नवहेमचारुचित्तचंचलकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे) नूतन सुवा या निमित सुंदर, वियित्र भने २२ जान डालन
ना जाने र २४॥ २॥ ता, (जाव दसदिसाओ उज्जोवेमाणे) से हिशामाने २ प्रशित ४२तेतो (पभासे माणे) पोतानी प्रमाथी से दिशामाने ही-यभान ४२ते. तो, (ईसाणे कप्पे) 2 Jशान (ईसाणवडिसए विमाणे) Jशनात विमानमा (जहेव रायप्प सेणइज्जे) २४प्रसेनीय syiwi व्या प्रमाणे (जाव दिव्वं देविपिंढ) हिय हेप*द्विने। Sun ४२तो तो, ते शानेन्द्र (जाव जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसि पडिगए) से हिमांथा ५४ थये। हतो ते हिशामा महेश्य थ६ गया. (भंते ! त्तिभगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ एवं वयासी) त्यारे 3 महन्त! मेQ समावन शन भगवान गौतमे શ્રમણ ભગવાન મહાવીરને વંદણ કરી નમસ્કાર કર્યા. પછી તેમણે તેમને આ પ્રમાણે
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩