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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ सनत्कुमारदेवऋद्धिवर्णनम् १३५ मूलम्-“एवं सणंकुमारे वि, नवरं-चत्तारि केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अदुत्तरं च णं तिरियमसंखेजे, एवं सामाणियतायत्तीस-लोगपाल अग्गहिसीणं असंखेज्जे दीवसमुद्दे सवे विकुव्वंति, सणंकुमाराओ आरद्धा उवरिल्ला लोगपाला सवे वि असंखेज्जे दीवसमुद्दे विकुवंति, एवं माहिदे वि, नवरं-सातिरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, एवं बंभलोएवि, नवरं-अट्र केवलकप्पे, एवं लंतएवि, नवरं-सातिरेगे अटकेवल. कप्पे, महासुक्के सोलस केवलकप्पे, सहस्सारे सातिरेगे सोलस, एवं पाणएवि, नवरं-बत्तीसं केवलकप्पे, एवं अच्चुएवि, नवरंसातिरेगे बत्तीसं केवलकप्पे जंबूदीवे दीवे, अण्णं तंचेव" 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति तच्चे गोयमे वायुभूई, अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ, जाव-विहरइ, तएणं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयाई मोयाओ नयरीओ नंदणाओ चेइयाओ पडिनिकखमइ,पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ सू० १६ ॥ पात ऐसी है कि यद्यपि वे व्यवहार में इस तरह से अपने चैक्रिय रूपोको उपयोग नहीं करते हैं फिर भी उनमें ऐसी शक्ति है कि यदि वे करना चाहे तो इस प्रकार से कर सकते हैं। इसमें कोई रुकावट नहीं हो सकती है। इस प्रकार से यह उनकी शक्ति का स्वरूपमात्र प्रतिपादित किया गया है ऐसा जानना चाहिये ॥ सू० १५॥ વ્યવહારમાં તેમની એ વિક્ર્વણ શકિતનો કદી પણ ઉપયોગ કરતા નથી. છતાં તેમનામાં એવી શકિત છે કે તેઓ ધારે તે તે વિફર્વ કરી શકવાને સમર્થ છે. તેમાં તેમને કોઈ મુશ્કેલી નડતી નથી. આ કથનથી એટલે જ સારાંશ ગ્રહણ કરવાને છે કે તેઓની શકિતના સ્વરૂપનું પ્રતિપાદન કરવા માટે જ આ પ્રમાણે કહેવામાં આવ્યું છે. સૂ ૧૫ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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