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प्रमेयचन्द्रिकाटीका श.३उ.१ कुरुदत्त देवऋद्धिनिरूपणम्
१२५ अर्धमासिकया संलेखनया आत्मानं जूषित्वा, त्रिंशद्भक्तानि अनशनानि छिच्चा आलोचितप्रतिक्रान्तः, समाधिप्राप्तः कालमासे कालं कृत्वा ईशाने कल्पे स्वीये विमाने, या चैव तिष्यके वक्तव्यता सा सर्वा एव अपरिशेषा कुरुदत्त पुत्रे ।।सू०१४॥ इस तरह कठिन तपःकर्म करनेमें जो निरन्तर-तत्पर रहते थे तथा दोनों हाथ ऊंचे करके सूर्यके समक्ष जो खडे रह कर आतापन भूमिमें आतापना लेते रहते थे (बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए) इस तरह जिन्होंने ठीक छ मास तक साधुपर्यायका पालन किया और पालन करके १५ पंद्रह दिनकी संलेखना से ( अत्ताणं जूसित्ता ) आत्माको संयोजित कर (तीसं भत्ताइं अणसणाइं छेदेत्ता) जिन्होंने ३०तीस भक्तोको अनशन द्वारा छेदित किया (आलोइयपडिकते) अनशन द्वारा ३० तीस भक्तोको छेदित करके वे कुरुदत्त पुत्र आलोचना प्रतिक्रमणसे युक्त होकर (समाहिपत्ते) समाधिको प्राप्त कर ( कालमासे कालं किच्चा )
और काल अवसर काल करके ( ईसाणे कप्पे संयंसि विमाणंसि) ईशान कल्पमें अपने विमानमें (जा चेव तीसए वत्तब्वया सा सव्वेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते) ईशानेन्द्रके सामानिक देवके रूपमें उत्पन्न हुए हैं। इनके विषयकी वक्तव्यता जैसी तिष्यकदेवकी वक्तव्यता प्रकट की गई है वैसी ही जाननी चाहिये। तात्पर्य इस प्रश्नका यही है कि- हे भदन्त ! आपके कुरुदत्तपुत्र नामके जो अनगार थे काल अपसरकाल करके ईशानेन्द्र के सामानिकदेव हुए है । सो मैं आपसे તપ કરવામાં જેઓ લીન રહેતા હતા, તથા તેઓ બન્ને હાથ ઉંથા રાખીને સૂર્યની सामे SAL २डीने ताजी भूमिमा मापना खेता ता. बहुपडिपुण्णे छम्मासे सामण्णपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए) २शते छ भास सुधी साधु पर्यायर्नु पासनीने,१५५४२६१सना सयाराथी (अत्ताणं जूसित्ता) मामाने २४त शन, (तीसं भत्ताइ अणसणाई छेदित्ता) १५५४२ हिवसन। 30त्रीस ei मा २ अनशन द्वारा परित्याशन, (आलोइय पडिकते) मासोयना तथा प्रतिम शने, (समहिपत्ते) भननी स्थिरता (समाधि) प्राप्त ॐशन (कालमोसे कालं किच्चा) भृत्युनो समय २॥वता यम पाभीन (ईसाणे कप्पे सयंसि विमाणंसि) शान हेवाभा, पोताना विमानमा (जा चेव तीसए वत्तव्वथा सा सव्वेव अपरिसेसा कुरुदत्तपुत्ते) शानेन्द्रना साभानि व ३ पन्न थया छ. माडीनु तेभर्नु
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૩