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________________ - प्रमेयचन्द्रिका टीका श. ३ उ. १ तिष्यकाणगारविषये भगवदुतरनिरूपणम् १०३ एनावच्च प्रभुर्विकुर्वितुम् , तद्यथा नाम युवतिं युवा हस्तेन हस्ते गृह्णीयात् , यथैव शक्रस्य तथैव यावत्-एष गौतम ! तिष्यकस्य देवस्य अयमेतावद्रूपो विषयः, विषयमात्रम् उदितम् , नोचैव खलु सम्पत्त्या व्यकुर्वी वा, विकुर्वति वा, विकुविष्यति वा ॥ मू० ११ ॥ और भि अनेक वैमानिक देवोंका (देवीणंच) एवं देवियों का (जाध विहरइ) अधिपति हैं । यावत सुखपूर्वक रहता है । (एवं महिडीए जाव एवतियं च णं पभू विकुवित्तए) इस तरह वह तिष्यक देव बहुत बडी ऋद्धिवाला है यावत् वह इतनी विकुर्वणा के लिये शक्तिशाली है । (से जहाणामए जुवई जुवाणे हत्थेणं हत्थे गेण्हेज्जा) जैसे कोई युवा पुरुष स्त्री को अपने साथ चिपलाकर पकडे रहता है । (जहेव सकस्स तहेव जाव एस णं गोयमा! तीसयस्स अयमेयारू वे विसये बिसयमेत्ते घुइए णो चेव णं संपत्तीए विकुव्विंसु वा, विकुवितु वा विकुव्विस्संति वा) वह शक्रकी जितनी विकुर्वणा करने की शक्तिवाला है। हे गौतम! यह जो तिष्यक देवकी विकुर्वणा करने की शक्ति कही गई हैं वह केवल सामर्थ्य दिखाने मात्रके लिये कही गई है। उसने आज तक ऐसी विकुर्वणा पहिले कभी न कही है, न की इच्छा वर्तमानमें वह ऐसी विकुर्वणा करता है, और न भविष्यमें ऐसी विकुर्वणा करेगा ॥ बहूणं वेमाणियाणंदेवाणं) मने blon भने वैमानि वोन ( देवीणं च) तथा हेवियोर्नु (जाव विहरइ ) माधिपत्य मागवे छ भने त्यो भने सागोन। Sun ४२। सुगपूर २९ छे. ( एवं महिडीए-जाव एवतियं च णं पभू विकुवित्तए) 20 प्रमाणे ते धoll मारे ऋद्धि माहिया युत छ. ते वी विजुवा ४२वान समर्थ छ त नीयन उपमा द्वारा समतव्यु छ- (से जहा णामए जुबई जुवाणे हत्थेणं, हत्थे गेण्हेज्जा) रेवी शते ४ युवान पुरुष ध युक्तीने हाथ વડે પકડીને બાહુપાશમાં લેવાને સમર્થ હોય છે, એ જ તે વિદુર્વણ કરવાને સમર્થ છે. (जहेव सकस्स तहेव जाव एस णं गोयमा ! तीसयस्स अयमेयारूवे विसये विसयमेत्ते बुइए णो चेव णं संपत्तीए विकुब्बिसु वा, विकुवितु वा, विकुम्बिसंतिवा) तिघ्यनl use न्द्रनाली ४ छ. में गौतम ! तिघ्यॐनी विge શકિતની આ વાત તેની શકિત બતાવવાને માટે જ કહી છે. પરંતુ આજ સુધી તેણે કદી પણ એવી વિક્વણું કરી નથી, વર્તમાનમાં કરતા પણ નથી અને ભવિષ્યમાં કરશે पर नहा. | सू. ११ ।। શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૩
SR No.006317
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages933
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size52 MB
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