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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श०२ उ०८ सू०१ चमरेन्द्रस्य सुधर्माप्तभादिनिरूपणम् ९७७ मुच्चत्वेन चतुर्विंशन योजनशतानि क्रोशं चोद्वेधेन गोस्तुभस्यावासपर्वतस्य प्रमाणेन ज्ञातव्यम् नवरमुपरितनं प्रमाण मध्ये भणितव्यम् मूले दशद्वाविशतिर्योजनशतानि विष्कंभेण मध्ये चत्वारि चतुर्विंशतिर्योजनशतानि विष्कंभेण, उपरि सप्तत्रयोविंशतियॊजनशतानि विष्कंभेण मूले त्रीणि योजनसहस्राणि द्वे च द्वात्रिंशोत्तरे बयालीस हजार योजन समुद्र के उपरितल को लांघने पर असुरों के इन्द्र तथा असुरों के राजा चमर का तिगिच्छकूटनाम का उत्पातपर्वत है ( सत्तदस एकवीसे जोयणसए उडू उच्चत्तेणं ) इस पर्वत की ऊंचाई सत्रह सौ इक्कीस १७२१ योजन की है ( चत्तारि तीसे जोयणसए कोसं उव्वेहेणं ) चारसौ तीस ४३० योजन और एककोश का इसका उबेध ( उंडापना-गहराई ) है। (गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पमाणेणं नेयव्ध) इस पर्वत का माप गोस्तुभ आवासपर्वत की तरह जानना चाहिये। (नवरं-उवरिल्लं पमाणं मज्झे भाणियन्वं) विशेषता यहां पर केवल यही है कि गौस्तुभ के ऊपर का जो भाग है और उसका जो माप है वह यहां बीच के भाग में जानना चाहिये (मूले दसबावीसे जोयणसए विक्खंभेणं मज्झे चउवीसे जोयणसए विक्खंभेणं ) अर्थात्-तिगिच्छककूट का विष्कंभ मूलमें एक हजार बाईस १०२२ योजन का -, बीच में विष्कंभ चारसौ चौईस ४२४ योजन का है ( उवरि सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं) ऊपर का विष्कंभ सातसौ तेईस ७२३ योजन का है । (मूले तिण्णिजो જનનું સમુદ્રની ઉપરની સપાટી પરનું અંતર ઓળંગવાથી અસૂરોના ઈન્દ્ર ससु२२१०४ यमरन। तिथूिट नाभने। पात पति छ. ( सत्तदस एकत्रीसे जोयणसए उटुं उच्चत्तेण) (ते 'त १७२१ मे १२ सातसा वीस) योगगन या छ.( चत्तारितीसे जोयणसए कोस च उठवेहेणं ) ४३० यारसोत्रीस यान मन शिन। तेन द्वेध (४) छ. ( गोथुभस्स आवासपव्वयस्स पमाणे ण नेयन) PAL पतनु भा५ गौतुम मापा ५ ४ सम पु. (नवर-उवरिल्ल पमाण मज्झे भाणियव्व) ही मेटली विशेषता समજવાની છે કે ગૌસ્તુભના ઉપરના ભાગનું જે માપ છે તે અહીં વચ્ચેના માપ સમन (मूले दसवावीसे जोयणसए विक्ख भेण मज्झे चत्तारि चउबीसे जोयणसए विक्खं भेणं) असे तिगि२७४टन। वि०म (विस्ता२) भूगमा १०२२ ( M२ બાવીસ) જનને છે અને વચ્ચે ૪૨૪ ચારસે ચોવીસ એજનને વિષ્કભ છે. ( उवरि सत्ततेवीसे जोयणसए विक्खंभेणं ) मने ५२ने। विन ७२३ यो। ननी छ. ( मुले तिण्णिजोयणसहस्साइं दोण्णिय बत्तीसुत्तरे जोयणसए किंचिवि भ १२३ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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