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________________ - ९७६ भगवतीसूत्रे छाया-कुत्र खलु भदन्तस्य चमरस्याऽसुरेन्द्रस्याऽसुरकुमारराजस्य सभा सुधर्मा प्रज्ञप्ता? गौतम ! जंबूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणेन तिर्यगसंख्येयान् द्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्याऽरुणवरस्य द्वीपस्य बाह्याद्वेदिकान्तात् अरुणोदयं समुद्र द्विचवारिंशद् योजनसहस्राणि अवगाह्याऽत्र खलु चमरस्याऽसुरेन्द्रस्याऽसुरकुमारराजस्य तिगिच्छककूटो नामोत्पातपर्वतः प्रज्ञप्तः सप्तदशैकविंशतिर्योजनशतानि ऊर्ध्व___ सप्तम उद्देशक में देवों के स्थानों का प्रतिपादन किया गया है सो उसी अधिकार को लेकर चमरचश्चा नामक देवस्थान के प्रतिपादन करने के लिये यह आठवां उद्देशक प्रारंभ किया गया है । इसी संबंध से प्रारंभ किये गये इस अष्टम उद्देशक का यह पहिला सूत्र है-( कहि णं भंते ! ) इत्यादि। सूत्रार्थ-( कहि णं भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सभा सुहम्मा पण्णत्ता ) हे भदन्त ! असुरकुमारों के इन्द्र असुर कुमारराजा चमर की सुधर्मा नामकी सभा किस स्थान पर है ? (गोयमा! जंबूदीवे दीवे मंदस पव्वयस्स दाहिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीहवइत्ता अरुणवरस्स दीवस्स बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ अरुणोदयं समुदं बायालीसं जोयणसहस्साइं ओगाहित्ता, एत्थ णं चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिच्छियकूडे नाम उप्पायपव्वए पनत्ते) हे गौतम ! जंबूद्विप नामके द्वीप में वर्तमान मंदर मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा तरफ तीरछे असंख्यात द्वीप समुद्रों को उल्लंघने पर अरुणवर नामका एक द्वीप है । उस द्वीप की बाह्य वेदिका के अन्त से સાતમાં ઉદ્દેશકમાં દેવોનાં સ્થાનેનું પ્રતિપાદન કરાયું છે. તે એજ વક્ત વ્યની અપેક્ષાએ ચમરચંચા નામના દેવસ્થાનનું પ્રતિપાદન કરવાને માટે આઠમે ઉદ્દેશક શરૂ કર્યો છે. આ સંબધને આધારે શરૂ કરાયેલા આઠમાં उद्देशनु सौथी ५ सूत्र २॥ प्रमाणे छ. (कहि ण भंते ) त्याहि ! सूत्रार्थ-(कहि ण भंते ! चमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सो सुहम्मा पण्णत्ता) 3 महन्त ! मसु२शुभाशना न्द्र सुभा२२। यमरनी सुधर्मा नामनी सभा या स्थान छ ! ( गोयमा!) 3 गौतम ! ( जंबूदीवे दीवे मंद रस्स पव्वयस्स दाहिणेण तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे वीइवत्ता अरुणवरस्स दीवस्स वाहिरिलाओ वेइय ताओ अरुणोदय समुह बायालीस जोयणसहस्साई ओगाहित्या, एत्य पंचमरस्स असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो तिगिच्छियकूडे नाम उपायपव्वए पत्रत्ते) गौतम! मूद्वीप नामना द्वीपमा माता म.२ (२) तनी દક્ષિણ દિશા તરફ તીરછા અનેક દ્વીપસમૂદ્રોને ઓળંગીએ ત્યારે અરુણુવર નામનો એક દ્વીપ આવે છે. તે દ્વીપની બાહા વેદિકાને છેડેથી બેતાળીસ હજાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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