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________________ प्रमैयधन्द्रिा टीका श० २ उ० ५ सू० १५ मृषावादिस्वरूपनिरूपणम् ९५५ तस्मात् निर्झरात् उष्णः उष्णोऽपकायः अभिनिस्रवति. तस्मात् प्रस्रवणात् सर्वदेव अत्युष्णं जलं प्रस्रवतीति 'एसणं गोयमा' एतत् खलु हे गौतम ! "महातवोवतीरप्पभवे पासवणे " महातपोपतीरमभवं प्रस्रवणम् अस्ति । प्रकरणार्थमुपसंहलाह " एसणं गोयमा" एष खलु हे गौतम ! " महातवोवतीरप्पभवस्स पासवणस्स अढे पन्नत्ते " महातपोपतीरप्रभवस्य प्रस्रवणस्यार्थः प्रज्ञप्तः अन्वर्थनामकथितम् । सेवं भंते सेवं भंते " तदेवम्-भदन्त ! तदेवं भदन्त ! हे भदन्त ! अस्मिन् उद्देशके यद्देवानुप्रियेण कथितं तत् एवमेव सत्यमेव आप्तस्य भवतो वाक्यस्य यथा. र्थत्वात् अन्यतीथिकानामनाप्तत्वेन तदीयवाक्यस्य तथा स्वाद्विरुक्तिर्भवति आदरातिशयजनिका 'त्ति भगवं गोयम समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसह" बाहर निकलता रहता है । (एस ण गोयमा ! महातवोवतीरप्पभवे पास. वणे) इस प्रकार से हे गौतम यह (महातपोपतीरप्रभव ) झरना है। प्रकरणार्थ का उपसंहार करते हुए भगवान् गौतम से कहते हैं-हे गौतम! इस प्रकार का (महातपोपतीरप्रभव) झरना है (सेवं भंते ! सेवं भंते ! हे भदन्त ! इस उद्देशक में जो आप देवानुप्रिय ने कहा वह ऐसा ही है अर्थात्-सत्य ही है, दो बार जो गौतम ने ऐसा कहा है उसका कारण गौतम का प्रभु में आदरातिशय है। जिसमें अतिशय आदर का भाव होता है वह प्रायःउनके विषय में एक ही वाक्य का दो बार प्रयोग कर दिया करता है। इसीलिये (सेवं भंते ! सेवं भंते। ) ऐसा दो बार एक ही वाक्य का प्रयोग किया है (त्ति) इस प्रकार कह कर (भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदर, नमंसह) भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर प्रभु को वंदना की, नमस्कार किया। वंदना त२ मा२ नlsvin ४२ छ, “ एसणं गोयमा ! महातवोवतीरप्पभवे पासवणे" હે ગૌતમ ! “મહાતપિયતીર પ્રભાવ” ઝરણાનું આવું સ્વરૂપ છે આ પ્રકરણ ના અર્થને ઉપસંહાર કરતાં ભગવાન ગૌતમ સ્વામીને કહે છે કે “હે ગીતभ ! म प्रा२नुं महातपातीर प्रसव” 3 छ " सेव भंते ! सेवभंते !" હે ભદન્ત ! આ ઉદ્દેશકમાં આપે જે કહ્યું તે સત્ય જ છે. બે વાર એમ કહેવાનું કારણું પ્રભુપ્રત્યે ગૌતમ સ્વામીને અતિશય આદર ભાવ છે. જેને જેના પ્રત્યે અતિશય હોય છે તે સામાન્ય રીતે ( આદરણીય વ્યક્તિના) વિષયમાં मे २४ १४यन में पा२ प्रयोग र्या ४२ छ. छेथी " सेव भंते ! सेवं भंते !" सेवा प्रयोग में १२ ४२वामा मा०ये। छ. “त्ति" मा प्रभार डान " भगव गोयमे समण भगवौं महावीर वंदइ नमसह" लगवान् गौतमे श्रम શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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