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____ भगवतीसरे
'पासादीए ' प्रासादिकः मनः प्रसन्नताप्रद्योतकत्वात् 'दरसणिज्जे' दर्शनीयः पुनः पुनदर्शनेऽपि नेत्रतृप्त्यजनकखात् 'अभिरुवे' अभिरूपः अतिरमणीयत्वात् 'पहिरवे' प्रतिरूपः दर्शकजनसंतोषजनकत्वात् एतादृशं प्रस्रवणं विद्यते, उष्णताकारणंवक्ति-'तत्थ णं बहवे उसिणजोणिया' तत्र महाहदे खलु बहवोऽनेके उष्ण योनिकाः तेजः कायाः 'जीवाय ' जीवाश्च 'पोग्गलाय ' पुद्गलाश्च 'उदगताए' उदकतया जलरूपेण 'वकमंति' अवक्रामन्ति-उत्पधन्ते. 'विउक्कमति' व्युत्क्रामन्ति विनश्यन्ति. कथितमेवार्थ व्यत्ययेन दर्शयति 'चयंति' च्यवन्ते विनश्यन्ति ' उवचिज्जति' उत्पद्यन्ते ' तव्वइरित्ते-वि य णं सयासमिओ उसिणे उसिणे आउयाए अभिनिस्सवइ ' तद्वयतिरिक्ते च खलु सदा निरन्तरं समितः बन जाता है (दरिसणिज्जे ) वारं वार देखने पर भि देखने वाले लोगों की आखों को तृप्ति नहीं मिलती हैं ऐसा यह दर्शनीय है। (अभिरूवे) अत्यन्त रमणीय होने से यह अभिरूप है । (पडिरूवे ) दर्शक जनों को संतोष का जनक होने से यह झरना प्रतिरूप है। इस झरना के जल में जो उष्णता रहती है उसका कारण यह है कि (तत्थ ण बहवे उसिण जोणिया) उस महाहूद में अनेक उष्णयोनिक (जीवाय) जीव
और (पोग्गलाय) पुद्गल (उदगत्ताए ) जलरूप से (वक्कमंति) उत्पन्न होते रहते हैं । इसी कथित अर्थको व्यत्यय करके दिखाते हैं ( चयंति उचिजंति ) विनष्ट होते रहते हैं और उत्पन्न होते रहते हैं । (तव्वइरित्ते वियणं सयासमिओ उसिणे उसिणे आउयाए अभिनिस्सवइ) वह इद जब पूर्ण भर जाता है तब उसमें से निरंतर उष्ण अपूकाय-जल
नाना भनने ते धाप्रसित ४३ छ. “ दरिसणिज्जे " ते मे श नीय छ ? पार पा२ वा छतi Ni नत्रोन तृति थती नथी. “ अभिसवे" अत्यन्त रमणीय पाथी त मनामु छ. “ पडिलवे" शान સંતેષ આવનાર હોવાથી તે પ્રતિરૂપ છે. તે ઝરણાના જળમાં જે ઉષ્ણુતા २ छ तनु ४१२९ मे छ , “ तत्थणं बहवे उसिणजोणिया तेउकायाए " ते गाशयमा भने: Guy यानि जीवाय पोग्गला य” भने दो। " उदगत्ताए” ३थे “ वक्कम ति” अत्पन्न यता २ छ, “ विउक्कमति " વિનષ્ટ થતાં રહે છે, (એજ કથિત અર્થને ઉલટાવીને બતાવતા સૂત્રકાર કહે છે) " चयंति उवचिज्जति" विनष्ट थdi २ छ भने उत्पन्न थतi २ छ. " तब्ध इरित्ते वि य णं सया समिओ उसिणे उसिणे आउयाए अभिनिस्सवई" तेराशय જ્યારે પૂરે પૂરું ભરાઈ જાય છે, ત્યારે તેમાંથી ગરમ ગરમ અપકાય-જળ નિર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨