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भगवतीसुत्रे कथितं सत्यम् । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादिना 'गोयमा' हे गौतम ! 'जं णं ते अन्न उत्थिया एव माइक्वंति ' यत् खलु ते अन्ययूथिकाः एवमाख्यान्ति यावत्यावत्करणात् भाषणपज्ञापनप्ररूपणानां संग्रहः 'जे ते एवमाइक्खंति ' ये ते एवमाख्यान्ति 'मिच्छं ते एवमाइक वति' मिथ्याते एवमाख्यान्ति मिथ्यात्वञ्च एत. स्कथनस्य विभंगज्ञानपूर्वकत्वात् प्रायः सर्वज्ञवचनविरोधात्-तथा प्रायोव्यवहारिकप्रत्यक्षादि प्रमाणेन स्वरूपा अनवलम्बनाच्च । “ जाव सव्वं नेयव्यं" यावत् सर्व नेतव्यं ज्ञातव्यमिति । 'अहं पुण गोयमा' अहं पुनर्गौतम ! अस्मिन् इदविषये 'एवमाइक्वामि'एव माख्यामि भासे पनवेमि परवेमि' भाषे प्रज्ञापयामि परूपयामि " एवं खलु रायगिहस्स नयरस्स" एवं खलु राजगृहस्य नगरस्य "वहिया वेभार उसिणे ) बहुत गर्म रहता है । ( से कहमेयं भंते ! एवं ) तो हे भदन्त ! वैभार पर्वत के ह्रद के विषय में जैसा यह कथन अन्यतीर्थिकों का है सो क्या वह ह्रद ऐसा ही है ? अर्थात् ऐसा उनका कथन सत्य है ? इसके उत्तर में भगवान् गौतम से कहते हैं- ( ज णं ते गोयमा! अन्न उत्थिया एवमाइवखंति जाव) हे गौतम ! अन्यतीर्थिक लोगों ने जो इस हूद के विषय में अपना ऐसा कथन प्रकट किया है सो (जे ते एवमाइक्खंति ) जो वे ऐसा कहते हैं ( मिच्छं ते एवमाइक्खति ) वह वे झूठा कहते हैं अर्थात् इस प्रकार का उनका कथन असत्य मिथ्या है। इस कथन में मिथ्यात्व इसलिये है कि यह कथन विभंगज्ञानपूर्वक किया गया है । ( अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि) हे गौतम ! मैं तो इस हूद के विषय में ऐसा कहता हूं ( भासामि, पनवेमि, परूवेमि) ऐसा भाषण करताहूं, ऐसा समझाता हूं, ऐसी प्ररूपणा करता हूं-कि कहमेयं भंते ! एवं " तो 3 महन्त ! वैमा२ ५तना शयन विषयमा અન્યતીથિકનું આ જે કથન છે તે શું સત્ય છે ? ત્યારે મહાવીર પ્રભુ ગીતभ स्वामीन मा प्रमाणे ४१५ मापे छ-"जं णं ते गोयमा ! अन्नउत्थिया एवमाइखंति जाव " गौतम ! मन्य तीथिलीमे शयना विषयमा तभर्नु मे रे ४थन ४८ ४यु छ, “जे ते एवं आइक्खंति" तसा मे २४ छ मिच्छं ते एकमाइक्खं ति" ते तेभर्नु ४थन पूछे-तेभर्नु ते ४थन મિચ્છા છે. આ કથનમાં મિથ્યાત્વ એ કારણે છે કે તે કથન વિભંગજ્ઞાન ५ ४२वामां मायुं छे “ अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि " गौतम ! मे विषयमा दुत मे छु, “ मासामि, पन्नवेमि, परवेमि" मे लाप ३ छु मे समा छु भने मेवी प्र३५ ४३ छ ।
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨