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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू० १४ पर्युपासनाफलनिरूपणम् ९४१ भदन्त ! 'सवणे कि फले' श्रवणं किं फलम् ? हे भगवन् ! श्रोताश्रवणात् कीदृशं फलमाप्नोति भगवानाह-"णा फले " ज्ञानफलं श्रवणस्य जीवाजीवादि विष. यकज्ञानं भवति “ सेणं भंते णाणे किं फले" तत् खलु भदन्त ! किं ज्ञानं फलम् ! भगवानाह– "विनाणफले " विज्ञानफलम् , विशिष्टज्ञानमेव फलं ज्ञानस्य यतः श्रुतज्ञानात् हेयोपादेयविवेककारि विज्ञानं समुत्पद्यते । " सेणं भंते विनाणे कि फले" तत् खलु भदन्त ! विज्ञानं किं फलं ? विज्ञानस्य कीदृशं फलं भवतीत्यर्थः प्राप्त होता है पुनः गौतम ! प्रभु से पूछते हैं कि-(सेणं भंते सवणे) हे भदन्त ! सत् शास्त्र के श्रवण से (किं फले ) जीव को कौन से फल की प्राप्ति होती है ? इस विषय में गौतम को समझाते हुए प्रभु कहते हैं कि-हे गौतम ! (सवणे जाणफले ) सत् शास्त्र के श्रवण से श्रोता को जीव अजीव आदि तत्व विषयक ज्ञान प्राप्त होता है । ( से गं भंते ! णाणे किं फले ) हे भदन्त ! जीव को जो जोव अजीव आदि तत्त्वविषयक ज्ञान प्राप्त होता है उससे उसे क्या फल प्राप्त होता है ? तब इसके उत्तर में प्रभु उनसे कहते हैं कि हे गौतम ! (विन्नाणफले) ज्ञान का फल जो विज्ञान है वह उसे प्राप्त होता है। शास्त्रसुनने से साधारण ज्ञान उत्पन्न होता है-और साधारण ज्ञान से विशिष्ट ज्ञान उत्पन्न होता है । जिससे हेय और उपादेय का वोध जीवको प्राप्त हो सकता है वही विज्ञान है । यहां विवेक रूप ज्ञान ही विज्ञानपद से लिया गया है-हेय और उपादेय का ज्ञान हो जाना इसका नाम विज्ञान है। ऐसा विज्ञान श्रुतज्ञान से ही उत्पन्न होता है। (से णं भंते ! विनाणे किं फले ) हे भदन्त ! विज्ञान का क्या फल होता है ? तब इस पर १५३५ ३ानी प्रति थाय छ. avil गौतम स्वामी प्रभुने पूछे छे -“सेण भंते ! सवणे कि फले" उ महन्त ! सत् शखना श्रवणुथी वन ( ३१ भणे छ १ मडावीर प्रभु वार मापे छ-" सवणे णाणफले" गौतम ! सत् શાસ્ત્રના શ્રવણથી જીવને અજીવ આદિ તત્વ વિષયક જ્ઞાનની પ્રાપ્તિ થાય છે. ते ज्ञानन शुं ३॥ भणे छ ? “विन्नाणफले " 3 गौतम ! ज्ञानतुं ३२ વિજ્ઞાન છે તેની તેને પ્રાપ્તિ થાય છે. શાસ્ત્ર સાંભળવાથી સામાન્ય જ્ઞાન મળે છે. અને સાધારણ જ્ઞાનમાંથી વિશિષ્ટ જ્ઞાન ઉત્પન્ન થાય છે. જેનાથી જીવને હેય અને ઉપાદેયનો બોધ થઈ શકે છે તેનું નામ જ વિજ્ઞાન છે. અહીં વિવેકરૂપ જ્ઞાનને જ વિજ્ઞાન પદ દ્વારા ગ્રહણ કરવામાં આવેલ છે-હેય અને ઉપાદેય સમજવાને વિવેક આવે તેનું નામ જ વિજ્ઞાનપ્રાપ્તિ છે. એવું विज्ञान श्रुतज्ञान द्वारा अपन्न थाय छे. “से ण भंते ! विन्नाणे किफले ?"
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨