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________________ प्रमेयचन्द्रिका टी० श० २ १०५ सू०१२ पाश्र्वापत्यीयविहारोत्तरनिरूपणम् ९२९ महावीरः “ तेणेव उवागच्छइ , तौव उपागच्छति आगच्छति उवागच्छित्ता' उपागत्य " समणस्स भगवओ महावीरस्स" श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य "अदूरसामंते” अदूरसामन्ते-नातिदूरे नातिसमीपे उचितस्थाने स्थिवा इत्यर्थः "गमणागमणाए पडिक्कमई " गमनागमनया इपिथिकी प्रतिक्रामति " एसणमणेमणं " एषणं निर्दोष कल्पनीयम्-अणेसणं' अकल्पनीयम् “ आलोएइ" आलोचयति, कल्पनीयाकल्पनीयविषये जातमतिचार प्रकाशयतीत्यर्थः "आलोइत्ता" आलोच्य " भत्तपानं पडिदंसेइ" भगवते भक्तपानं प्रतिदर्शयति "पडिदंसित्ता" प्रतिदय 'समग भगवं जाव महावीरं एवं वयासी' श्रमण भगवन्तं महावीर यावत् एवमवादीत. अत्र यावत्पदेन " वंदइ नमसइ " वन्दित्वा नमस्यित्वा' इत्येतस्य ग्रहण कर्त्तव्यम् तेन वन्दते नमस्करोति भगवन्तम् , वन्दनं नमस्कार कृत्वा एवमवादीत् “ एवं खलु भंते" हे भदन्त ! एवं वक्ष्यमाणरीत्या "अहं लक उधान में आये वहाँ आकर जहां श्रमणं भगवान महावीर विराजमान थे (तेणेब उवागच्छद) वहां पर आये (उवागच्छित्ता) भगवान् महावीर के पास आकर के उन्हों ने पहिले (समणस्स भगवओ महावीरस्स) श्रमण भगवान् महावीर के समीप (अदूरसामंते) न बिलकुल समीप और न बहुत दूर, किन्तु उचित स्थान पर बैठ कर (गमणागमणाए पडिकमइ ) ईपिथका प्रतिक्रमण किया (एसणमणे. सणं अलोएइ) एषणा अनेषणा की अलोचना की ( अलोइत्ता) आलोचना करके (भत्तपाणं पडिदंसेइ ) फिर उन्हों ने लाये हुए भक्तपान प्रभु को दिखलाया। (पडिदंसित्ता) दिखाकर बाद में उन्हों ने (समणं भगवं महावीरं जाव एवं वयासी श्रमण भगवान् महावीर को यावत् वन्दन नमस्कार करके इस प्रकार कहा-(एवं खलु भंते) हे જ્યાં શ્રમણ ભગવાન મહાવીર વિરાજમાન હતા, તે ગુણશિલક ચૈત્યમાં આવ્યા. " उवागच्छित्ता " त्यां मापीन तेमणु ममणस्स भगवओ महावीरस्स अदरसामंते" मसवान महावीरथी महु २ ५५ न डाय अने महु पासे ५ न डाय सेवा स्थाने मेसीने “ गमणागमणाए पडिक्कमई ” ध्यपथर्नु प्रति अभए यु-गमन तथा माशमानना मतियारानी मासोयना ४२१. “ एसणमणेसणं आलोएइ" अषण। सने मनेषानी मातोयन ४री. ', आलोइतो" मासोयना शन " भत्तपाणं पडिदंसेइ” पहारी सातi मार पाणी प्रभुने सताव्या. ,, पडिदसित्ता " ते मतावान तेभणे “ समणं भगवं महावीर जाव एवं वयासी” श्रम भवान महावीरने हा नभ२४॥२ अरीने २५ प्रभार भ ११७ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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