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प्रमेrefer टीका श०२ उ०५ सू०१२ पार्थ्यापथीयविहारोत्तर निरूपणम् ९११ भावतः शुभभावायुक्तानि द्रव्यतो नीचानि- पर्णकुटीरादीनि, भावतः शुभभावादिरहितानि मध्यमानि द्रव्यतः सामान्यानि भावतः सामान्यभावयुक्तानि 'कुलाई ' गृहाणि ' घरसमुदाणस्स ' गृहसमुदाणस्य = गृहेषु समुदानं भैक्षं गृहसमुदानं तस्मै गृहसमुदानाय 'भिक्रखायरियाए ' भिक्षाचर्या यैभिक्षाचर्यार्थम् - अडित्तए ' अटितुं - गन्तुम् भवदाज्ञया उक्तकुलेषु षष्ठपारणके भिक्षार्थं गन्तु मिच्छामि इति गौतमस्य भगवदाज्ञायाचनमिति भगवान् कथयति ' अहा सुह देवाणुपिया ' यथा सुखं देवानुप्रिय ! मा पडिवंधं करेह' मा प्रतिबन्धं विलम्बं कुरुत ' तणं भगवं गोयमे ' ततः खलु भगवान् गौतमः ' समणेणं भगवया महावीरेण अन्भणुन्नाए समाणे ' श्रमणेन भगवता महावीरेणाभ्यनुज्ञातः सन् समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ ' श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यांतिकात् समीपात् ' गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक वमइ' गुणशिलकात् चैत्यात्गृहसमुदान- अनेक घरों की भिक्षा के लिये (भिक्खायरीयाए ) शास्त्रोक्त विधिके अनुसार भिक्षा प्राप्त करने को (अडिउं) भ्रमण करूँ अर्थात् आप की आज्ञा से उक्त कुलों में छट्ट के पारणा में भिक्षा के लिये जाना चाहता हूं। इस प्रकार गौतम स्वामी ने जब आज्ञा मांगने के लिये प्रार्थना की तब प्रभुने उनसे कहा (अहासुहं देवाणुप्पिया) हे देवानु प्रिय ! तुम्हें जैसे सुख हो वैसा करो ( मा पडिबंध करेह ) विलम्ब मत करो ( तरणं भगवं गोयमे ) तब भगवान् गौतम ( समणेणं भगवया महावीरेण अन्भणुण्णाए समाणे ) श्रमण भगवान् महावीर से अभ्यनुज्ञात होकर अर्थात् आज्ञा प्राप्त कर ( समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ गुणसिलाओ चेहयाओ ) श्रमण भगवान् महावीर के पास से और गुणशिलक चैत्य- उद्यान से ( पडिनिक्खमइ ) निकले और
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लिक्षा सेवाने भाटे (भिक्खायरिया ए ) शास्त्रोक्त विधि प्रमाणे लिक्षा भेजववाने भाटे (अडिउ ) अभय खानी भारी ईच्छा छे भेटते है आपनी अनुज्ञा લઈને આજે ટ્રેડના પારણાને દિને ઉક્ત કુલામાં ગોચરી કરવા જવાની મારી અભિલાષા છે. આ રીતે જ્યારે ગૌતમ સ્વામીએ આજ્ઞા માગી ત્યારે પ્રભુએ तेभने उर्धु-(अहासुह' देवाणुप्पिया ) हे देवानुप्रिय! तुमने सुभ उपनेतेभ रे।, ( मा पडिबधं करेह ढील न हो. त्यारे लगवान गौतम ( समणेण भगवया महावीरेण अब्भुणण्णाए समाणे ) श्रभशु लगवान महावीरनी आज्ञा सहने ( समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियाओ गुणसिलाओ चेइयाओ ) श्रभशु लगवान महावीरनी पासेथी भने शुशुशिल सैत्य ( उद्यान ) भांथी ( पडिनिक्ख
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨