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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श. २ उ० ५ सू० ११ धर्मोपदेशनानिरूपणम् ८९ उत्थाय स्थविरान् भगवत-स्त्रिकलो वन्दन्ते नमस्यन्ति-बन्दित्वा नमस्यित्वा स्थविराणां भगवतामंतिकात् पुष्पवतिकात् चैत्यात् प्रतिनिष्कामन्ति प्रतिनिष्कम्य यामेव दिशं प्रादुर्भूताः तामेव दिशं प्रतिगताः । ततः खलु ते स्थविरा अन्यदा कदाचित तुझिकायाः नगर्याः पुष्पवतिकात् चैत्यात्-प्रतिनिर्गच्छन्ति, प्रतिनिर्गत्य बहिर्जनपदविहारं विहरन्ति ।। मू० ११॥ ( अट्ठाई उवादियंति ) उनका अर्थ ग्रहण किया ॥ ( उवादित्ता) अर्थ को ग्रहण कर अर्थात्-प्रश्नों का समुचित उत्तर प्राप्तकर फिर वे (उठाए इवेंति ) अपनी उत्थान शक्ति से उठे ( उद्वित्ता थेरे भगवंते तिक्खुत्तो वंदति नमसंति ) उठकर उन्होंने स्थविर भगवन्तों को तीन बार वन्दना की-स्तुति की-नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता ) बन्दना नमस्कार करके (थेराणं भगवंताणं अन्तियाओ) वे उन स्थविर भगवन्तों के पास से (पुष्फवश्याओ चेइयाओ) और पुष्पवतिक उथा. न से ( पडिनिक्खमंति ) बाहर निकले और (पडिनिक्खमित्ता) निकल कर (जामेव दिरि पाउन्भूया तामेव दिसिं पडिगया) जिस दिशा से आये थे वहीं वापिस गये। (तएणं ते थेरा भगवंतो अभयाकयाई) इसके बाद उन स्थविर भगवन्तों ने किसी एक समय (तुगियाओनयरीओ) तुंगिका नगरी से और (पुप्फवइयाओ चेइयाओ पुष्पवतिक उद्यान से (पाडिनिग्गच्छंति ) विहार किया और वहांसे (पडिनिग्गच्छित्ता) विहार करके वे ( यहिया जणवयविहारं विहरति ) बाहर देशों में विचर ने लगे ॥ सू-११॥ भीत भने प्रश्रो ५५४ पूछया. (पसिणाई पुच्छित्ती) प्रश्नी पूछीन (अद्वाइं उवादियंति) ते प्रशीन। म अहए या ( उवादित्ता) मथ अडशन-मेटले पोताना प्रश्नोना सथित उत्तर भेजवीन ( उदाए उद्धति) तेमनी जत्थान शतिथी या. “ उद्वित्ता थेरे भगवते तिक्खुत्तो वंदति नमसंति" हीन तभी स्थविर लगताने त्राण पा२ प , नम२४२ र्या. (वंदित्ता नमसित्ता) १४ नम२४१२ ४शन (थेरण भगवंताणं अतियाओ) ते स्थ१ि२ भगवाननी पांसेयी तथा (पुरफत्रइयाओ चेइयाओ) पु०५३ति चैत्यमांथी (पडिनिक्खमंति) मडा नीज्या. (पहिनिकमित्ता) त्यांथी नीजीन (जामेव दिसिं पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया ) हिमांधी माया ता, ते हिशामा पाछi श्या. (तएण ते थेरे भगवंतो अन्नया कयाई) त्या२ माह ते स्थविर सावता से समये (तुगियाओ नयरिया ओ पुष्फवइयाओ चेइयाओ पडिनिग्गच्छंति) तुमि नगरी ना ते ५०५पति: येत्यमाथी विहा२ या. मने त्याथी (पडिनिग्गच्छित्ता) विहार ४रीने तेम्मा (बहिया जणययबिहार विहरति) मारना प्रदेशमा विय२१॥ वाय! भ ११२ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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