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________________ भगवतीसूत्रे भगवतः कथनम्। गौतमः माह-'हंता चिट्ठइ' हन्त तिष्ठति भदन्त !, इति गौतमस्य स्वीकरणम् । तथा च यथा वायुराधारो जलस्य बस्तिस्थले दृश्यते एवमेव तनुवातजलयोरप्याधाराधेयभावः संभवत्येव, तत्र बायुरधिकरणमाधेयश्च जलमिति । भगवानाह-' से तेणद्वेणं जाव जीवा कम्मसंगहिया' तत्तेनार्थेन यावत् जीवाः कर्मसंगृहीताः, तेन कारणेन दृतिस्थितवायुजलदृष्टान्तेन एवमुच्यते हे गौतम ! 'जाव जीवा कम्मसंगहिया' यावत्-जीवाः कर्मसंगृहीताः, यावच्छब्देन आकाशप्रतिष्ठितो वायुरित्यारभ्य 'अजीवा जीवसंगहिया' अजीवाः जीवसंगृहीताः, इत्यन्तः पाठः संग्राह्यः, अथ घनोदध्युपरि पृथिवोति दृष्टान्तेन स्पष्टयति- से जहा वा' इत्यादि, 'से जहा वा केइ पुरिसे बत्थि आड़ोवेई' तद्यथा-वा कश्चित् पुरुषो बस्तिमाटोपयति, वायुना पूरयति अत्र 'वा' शब्दो दृष्टान्तान्तरद्योतकः है। इस बात को प्रकट करने के लिये यह 'उपरिमतल' पद कहा गया है। तथा -जैसे वायु आधार जल का बस्तिस्थल में दिखलाई देता है, इसी प्रकार से तनुवात और जल इन दोनों का भी आधार आधेयभाव संभवता है। यहां वायु अधिकरण है और जल आधेय है । (से तेणटेणं जाव जीवा कम्मसंगहिया) इस कारण हे गौतम ! मैंने ऐसा कहा है कि यावत् जीव कर्मसंगृहीत हैं। यहां यावत् शब्द से आगासपइट्टिए वाए " इस पाठ से लेकर " अजीवा जीवसंगहिया " यहां तक का पाठ ग्रहण किया गया है । “घनोदधि के ऊपर पृथिवी है" इस बात को अब सूत्रकार दृष्टान्त से स्पष्ट करते हैं । ( से जहा वा केइ पुरिसे वत्यि आडोवेइ) जैसे कोई पुरुष चमड़े की मसक में वायु भरकर फुलावे । यहां जो "वा" शब्द प्रयुक्त हुआ है वह दूसरे दृष्टान्त का बोधक है। " उवरिमतल" ५४ भू४यु छे, रवी शते पानी माघार वायु भशमi દેખાય છે એ જ પ્રમાણે તનુવાત અને પાણી, એ બન્નેમાં પણ આધાર આધેય ભાવ સંભવી શકે છે. અહીં વાયુ આઘાર છે અને પાણી આધેય છે. ( से तेणटेणं जावजीवा कम्मसंगहिया ! ) 3 गौतम ! ते १२0 में से ४ह्यु છે કે અહીં “જીવ કર્મ સંગૃહીત છે ત્યાં સુધીનું કથન ગ્રહણ કરવું અહીં ( जाव ) “ यावत् " ५४थी “ आगासपइदिए वाए " थी १३ ४शन "अजीवाजीवसंगहिया " सुधानो पा8 अ ४२३॥ धनाधिनी ५२ पृथ्वी छ " मे पातने सूत्रा२ दृष्टान्त 43 समनवे छे-( से जहा वा केइ पुरिसे बत्थिं आडोवेइ) भ पुरुष यामानी भशम व सरीने तेने भुसावे. मडी रे " वा” ५६ २मा०युं छे ते vlon दृष्टान्तनुं ।५४ छ. (आडोवित्ता શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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