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भगवतीखत्रे विशिष्टप्रभावशालिनः अथवा वर्चस्विनः प्रभावकवचनयुक्ताः “ जसंसी " यशस्विनः प्रसिद्धिमन्तः "जियकोहा" जितक्रोधाः "जियमाणा" जितमानाः "जियमाया " जितमायाः "जियलोहा" जितलोमाः "जियनिदा " जितनिद्राः “जियइंदिया" जितेन्द्रियाः "जिय परिसहा" जितपरीपहाः “ जीविआसमरणभयविप्पमुक्का" जीविताशामरणभयविप्रमुक्ताः येषां न विद्यते जीवनस्याशा तथा मरणभयश्चेति जीविताशा जीवनेच्छा, मरणभयं-मरणभीतिश्च, एतद्द्वयेन विमुक्ताः-रहिताः "जाव कुत्तियावणभूया' यावत् कुत्रितापणभूताः इह यावत् करणात् इदं दृश्यम्-" तवप्पहाणा गुणप्पहाणा करणप्पहाणा चरणप्पहाणा निग्गथे, वच्चंती' विशिष्ट प्रभारूप वर्चस्वसे युक्त थे, प्रभावक वचनवाले थे, 'जसंसी ' प्रसिद्धिसे युक्त थे-विख्यात थे जियकोहा क्रोध को जीते हुए थे-अर्थात्-उत्तमक्षमारूप धर्म के धारी थे 'जियमाया' माया को जीते हुए थे-अर्थात्-उत्तम आर्जव धर्मसे युक्त थे 'जियलोहा' लोभ को जोते हुए थे-अर्थात्-निर्लोभी थे 'जियमाणा' मानकषाय को जीते हुए थे-अर्थात्-मार्दव धर्म के धारी थे, 'जियनिद्दा' निद्रारूप प्रमाद को अपने वश में किये हुए थे अर्थात् अल्पनिद्रो वाले थे जियइंदिया' इंद्रियों पर पूर्ण रूप से अंकुश रखे हुए थे 'जियपरिसहा' क्षुधा आदि परीषहों के आने पर आकुलव्याकुल नहीं होते थे । 'जीवियासमरणभयविप्पमुक्का' जीवन की आशा और मरण के भय से सर्वथा रहित थे। 'जाव कुत्तियावणभूया' यावत् ये कुत्रिकापणरूप थे-जिस दुकान से तीनलोक सम्बन्धी प्रत्येक वस्तु "वसी, विशिष्ट प्रमा१३५ वयस्थी युक्त ता अथवा प्रभावशाली पाणीथी युत उता, "जसंसी " प्रीतिथी युत उता, "जियकोहा" भी जोधन त्या तो-सटले, उत्तम क्षमाशुशुने पा२१ ४२॥२ उता, " जियमाया" भागे भायाने ती ती-मेटले उत्तम म धमथी युक्त उता. " जियलोहा"भरे सामने त्या ता-मेटले तसा निली हुताजियमाणा" भो भान४ाय ५२ विल्य मेजये। तो-मेटले भाई भने धारण ३२ता तो, “जियनिहा" भणे प्रभा ३५ निद्राने १श उरी ती, “ जियइंदिया" भन्द्रियो ५२ विक्ष्य भयो हतो, “ जियपरीसहा" ક્ષધા આદિ પરીષહોને જીત્યા હતા. પરીષહો આવી પડતા જેઓ મુંજાતા ન उता, "जीवियासमरणभयविप्पमुक्का " २ भरना अयथी मने पननी माक्षाथी सवय २हित ता, (जाव कुत्तियावणभूया ) २मा त्रिी સમાન હતા, જે દુકાનેથી ત્રણે લેક સંબંધી દરેક વસ્તુ મળી શકે છે તે દુકાનને
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨