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________________ ha भगवतीसूत्रे गृहीतार्थाः अर्थावधारणात्, “पुच्छियहा" पृष्टार्थाः सन्धिग्धार्थस्य प्रश्नकरणात् "अभिगयद्वा" अभिगतार्थाः = पृष्टार्थस्यावबोधात्, 'विणिच्छियट्ठा' विनिश्चितार्थाः अर्थावधारणेन पदार्थानां विनिश्वयात्, " अहिमिंज पेमाणुरागरता" अस्थिमज्जा प्रेमानुरागरक्ताः - अस्थीनि = ' हड्डी ' इति प्रसिद्धानि, मज्जा = अस्थनां मध्यगतो धातुविशेषः तासु अस्थिमज्जासु प्रेमानुरागेण प्रवचनस्य प्रेमरूपानुरागेण रक्ताः रञ्जिताः प्रवचनस्य प्रेम्णाऽनुरागेण च तेषामात्मप्रदेशास्तन्मयाजाता इत्यर्थः । एतादृशाः सन्तोऽन्यान् पुत्रादीन् वा प्रति एवमकथयन् " अयमाउसो " इदमायुमन्तः' हे आयुष्मन्तः इदं ' निग्गंथे पावयणे ' नैर्ग्रन्थं प्रवचनम् " अट्ठे " अर्थःमोक्षस्य कारणम्, अत एव " अयं परमडे" इदं परमार्थ :- मोक्षकारणभृतत्वादिदं नैर्ग्रन्थं प्रवचनं परमार्थः सारभूतमित्यर्थः, “ से से अणड्डे " शेषमनर्थम् शेषं नैर्ग्रन्थ प्रवचनभिन्नं कुप्रवचनम् अनर्थम् = मोक्षबाधकत्वान्निष्प्रयोजनमिति ! पुनस्तानेव बोध हो जाता था इसलिये ये अभिगतार्थ थे । (विणिच्छियट्ठा) अर्थ की अवधारणा से पदार्थों का ये निश्चय करते थे इसलिये विनिचितार्थ थे । (अट्ठिमिंज पेमाणुरागरसा) अस्थि नाम हड्डी का और मज्जा हड्डियों के मध्यगत धातु विशेष का है इनकी हड्डी मज्जा धर्म के अनुराग से रंगी हुई थी, प्रवचन के प्रति इनके आत्मप्रदेशों में प्रेम और अनुराग था । अर्थात् इनकी आत्मा के प्रदेश प्रवचन मय ही थे। जब ये श्रमणोपासक ऐसे थे तब ही ये अपने-अपने पुत्रदि कों से समय २ पर ऐसा कहा करने थे कि - ( अथमाउसो निग्गंथे पावणे) हे चिरंजीवो ! यह निग्रंथ प्रवचन (अट्ठे ) मोक्षरूप अर्थका कारण है। अतएव (अयं परमट्ठे ) यह सारभूत है। (सेसे अणट्ठे ) इस निर्ग्रन्थप्रवचन से भिन्न जो कुप्रवचन हैं वे मोक्ष के बाधक होने से निष्प्रयोजन हैं। उता ( अभिगयट्टा ) पूछेला अर्थन। तेभने सारी रीते मोघ थतेो हतो तेथी तेयाने अभिगतार्थं विशेष सगाउयुं छे. (विनिच्छियट्ठा) अर्थांनी अवधा રણથી તેઓ પદાર્થના નિશ્ચય કરતા હતા, તેથી તેઓ વિનિશ્ચિતાર્થ હતા. (अट्ठमि जपेमाणुरागरता ) अस्थि मेटले हाउ भने अस्थिनी वरये रहेली ધાતુ વિશેષનું નમ મજા છે. તેમના અસ્થિમજ્જા ધર્મના રંગે રંગાયેલા હતા. નિશ્ચય પ્રવચન પ્રત્યે તેમના આત્મ પ્રદેશમાં પ્રેમ અને અનુરાગ હતા એટલે તેમના આત્મપ્રદેશે પ્રવચનમય જ હતા. તેથી જ તે तेभना पुत्राने वारंवार भेवु ह्या उरता है (अयमाउसो निगथे पावयणे ) हे आयुष्मान!! या नियथ अवयन ( अट्ठे ) भोक्ष३५ अर्थाने आप्त पुरावना छे. तेथी ४ ( अयं परमट्ठे ) तेसारभूत छे. ( से से अणट्टे) નિગ્રંથ પ્રવચન સિવાયના ખીજા જે પ્રવચના છે તે યુપ્રવચનેા છે. તે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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