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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू. ८ तुङ्गिकानगरिस्थ श्रावकवर्णनम् ८४३
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श्रमणोपासकाः धर्मविषये कीदृशा: ? इत्याह 'अभिगयजीवाजीवा' इत्यादि । " अभिगयजीवाजीवा " अभिगतजीवाजीवाः - अभिगताः = यथावस्थित स्वरूपेण ज्ञाताः जीवा अजीवाश्च यैस्ते तथा जीवाजीव स्वरूपज्ञानवन्त इत्यर्थः " उवलद्ध पुण्णपावा उपलब्ध पुण्यपापाः उपलब्धे = यथावस्थितस्वरूपेण विज्ञाते पुण्यपापे यैस्ते तथा तत्त्वतो - विज्ञातपुण्यपापस्वरूपा इत्यर्थः " आसवसंवरनिज्जर किरिया हिगरणवंधमोक्खकुसला " आस्रव-संवर - निर्जरा- क्रियाधिकरण - बन्धमोक्षकुशलाः, तत्र - आस्रवः - आस्रवती = प्रविशति अष्टविधकर्मसलिलं और अपनी लौं से निर्वात स्थानमें सुरक्षित जलता हुआ चमकता रहता है उसी प्रकार से ये श्रमणोपासक भी आढय, दीप्त और अपरिभूत बनेरह कर खूब चमकते थे । ये श्रमणोपासक जिस तरह लौकिक व्यवहार में दक्ष थे उसी प्रकार से ये धर्म के विषय में भी दक्ष थे इसी बात को अब प्रकट किया जाता है ( अभिगयजीवाजीवा) जीव और अजीव पदार्थ अपने २ स्वरूप से जैसे अवस्थित हैं उसी प्रकार से ये उन्हें जानते थे- न्यूनाधिक रूपमें नहीं । ( उवलद्ध पुण्णपावा) पुण्य का स्वरूप क्या है और पाप का स्वरूप क्या है इस विषय को भी ये अच्छी तरह से जानते थे । ( आसवसंवरनिज्जर किरियाहिगरणबंध मोक्खकुसला) आस्रव, संवर, निर्जरा, क्रिया अधिकरण, बंध और मोक्ष, इन तत्वों के विषय में ये कुशल थे- अर्थात् इनमें हेय कौन है और उपादेय कौन है - इस बात के ये अच्छी तरह से ज्ञाता थे । जिस प्रकार से तालाब आदि में जल स्रोतों द्वारा आता है उसी प्रकार से आत्मारूप
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યુક્ત દીવા નિર્વાંત સ્થાનમા સુરક્ષિત મળ્યા કરે છે અને પ્રકાશ આપે છે એજ રીતે શ્રમણેાપાસકે પણ આઢચ, દીપ્ત અને અપરિભૂત હાવાથી ખૂબ શેલતા હતા. તે શ્રમણેાપાસકા લૌકિક વહેવારમાં જેવા દક્ષ હતા એવા જ ધાર્મિક વિષયામાં પણ तेथेो दृक्ष हता, मे नीचेनां सूत्रो द्वारा अताववामां भाव्यु छे - " अभिगय जीवाजीवा " व मने सलवना यथार्थ स्व३पना तेथेो ज्ञाता ता. लद्धपुण्णपावा પુણ્ય તથા પાપનુ સ્વરૂપ પણ તેઓ સારી રીતે સમજતા. ता. आसव-संवर- निज्जर-किरिया - हिगरण-बंध - मोक्ख - कुसला " भास्त्रव' सवर, निर्भरा, हिया, अधिर, मध, भने भोक्ष, मे तत्त्वोना विषयभां તેઓ નિપુણ હતા. એટલે કે તે તત્ત્વામાં ય કયાં કયાં તત્ત્વો છે અને ઉપાદેય તરવાં કયાં કયાં છે તે તેઓ સમન્તા હતા. જેવી રીતે તળાવ આફ્રિ માં ઝરણાંઓ દ્વારા પાણી આવે છે, એજ પ્રમાણે આત્મારૂપી તળાવમાં આઠ પ્રકારનાં કર્મ રૂપી જળના પ્રવેશ મિથ્યા દર્શન આદિશ્ય લાવા વડે
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
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