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प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ०५ सू० ८ तुङ्गिकानगरिस्थ श्रावकवर्णनम् ८३७ प्रवचनम् अर्थः इदं परमार्थः शेषमनर्थः उच्छ्रितपरिघा अमावृतद्वारा त्यक्तान्त:पुरगृहप्रवेशाः बहुभिः शीलवतगुणविरमणप्रत्याख्यानपौषधोपवासैश्चतुर्दश्यष्टम्युद्दिष्टा ( अमावास्या) पूर्णमासीषु प्रतिपूर्ण पौषधं सम्यगनुपालयन्तः श्रमणान् इन लोगों ने अच्छी तरह से जानलिया था। शास्त्रप्रतिपादित अर्थों का रहस्य क्या है ? यह सब निर्णय करके इन्हों ने अच्छी तरह से उन्हें विना किसी संदेह के निश्चय कर लिया था। निग्रेन्थ प्रवचन सम्बन्धी इनका प्रेम एवं अनुराग इनकी अस्थि और मज्जातक में समाया हुआ था । अयमाउसो णिग्गंथे पावयणे अढे अयं परमढे, सेसे अणहे ) ये कहा करते थे-कि हे आयुष्मानो ! यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही मोक्ष का कारण है. इसलिये यह सारभूत है। इससे अतिरिक्त और जितने भी प्रवचन हैं वे सब कुप्रवचन हैं और असारभूत हैं । (ऊसिय फलिहा ) इनके अंतः करण स्फटिक मणियों की तरह शुद्ध याने निर्मल अर्थात् पाप रहित थे (अवंगुय दुवारा) इनके मकानों के द्वार दान पुण्य आदिके लिये सदा खुले रहते थे। (चियत्तंते उरधरप्पवेसा) हर एक के घर में तथा अन्तः पुर में इनका प्रवेश वर्जित नहीं था। (पहूहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहिं) बहुत प्रकार के शोलवत, गुणवत, विरमण, प्रत्याख्यान पौषधोपवासों द्वारा (चाउद्दसह-मुदिट्ठपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्मं अणुपालेमाणा) ये चौदश, अष्टमी હતો. શાસ્ત્રપ્રતિપાદિત અર્થનું શું રહસ્ય છે તે તેમણે કઈ પણ જાતને સંદેહ રાખ્યા વિના નિશ્ચિત કરી લીધું હતું. તેમના હાડે હાડમાં તથા નસે नसभा नि प्रयन प्रत्येक मनु२।२१ व्यापेटो डतो. ( अयमाउसो णिगंथे पावयणे अटे, अय' परम सेसे अणद्वे) तेमा ४ ४२ता माय માને ! આ નિગ્રંથ પ્રવચન જ મેક્ષ અપાવનાર છે. તેથી તેજ સારભૂત છે, ते सिवायनां मां अपयनप्रक्या छ भने मसारभूत-सा२२हित-छ.( उसिय फलिहा ) तेभाना मत:४२५५ २५टि४ मणियानी भा३४ शुद्ध २उता उता मेट
तमा ५५२डित मत:४२वाय उता “ अवगुयदुवारा " तेभाना मानानां बार होन पुण्य भाटे सह Gधाsi रडतात. “चियत्तते उरधरप्पवेसा” ४२४ घमां तथा अत:पुरमा ६ ५५ तनी । 21 विना तेभने प्रवेश ३२१॥ वाम भापतो तो. ( बहुहिं सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासेहि) ते ५॥ २॥ शीतव्रत, शुनत, वि२भय, अत्याच्यानी भने पौषधीयवासे ४२ता उता. (चाउद्दसद्रमुदिपुण्ण मासिणीसु पडिपुण्ण पोसह सम्म अणुपालेमाणा ) तेमा यौहश, माइम,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨