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________________ ८३२ भगवतीसूत्रे शास्त्रे श्रूयन्ते “ एरिसएणं गोयमा” ईदृशः खलु हे गौतम ! " मेहुणं सेवमाणस्स" मैथुन सेवमानस्य " असंजमे कज्जइ" असंयमः पापं क्रियते भवतीति "सेवं भंते सेवं भंते " तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! यत् देवानुप्रियेण कथितं तदेवं सत्यमेव भवद्वाक्यस्य आप्तवाक्यत्वेनावितथत्वात्. "जाव विहरई" यावद्विहरति इति कथयित्वा भगवन्तं नमस्कृत्य संयमेन तपसा आत्मानं भावयन् विहरतीति ।। मू० ७ ॥ ___ पूर्व मनुष्याणां तिर्यक पञ्चन्द्रियाणाञ्चोत्पत्तिः कथिता तत्प्रसङ्गादेवानामुत्पत्ति प्रतिपादयितुं तुङ्गिकानगरी श्रावकवर्णनमाह " तएणं " इत्यादि ।। ___ मूलम्-तएणं समणं भगवं महावीरे रायगिहाओ नयराओ गुणसिलाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता बहिया जणवयविहार विहरइ। तेणं कालेणं तेणं समएणं तुगियानाम नयरी होत्था वपणओ तीसेणं तुंगियाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीमाए पुप्फवतीए नामं चेइए होत्था । तत्थ तुंगियाए नयरीए बहवे समाणोवासया परिवसंति अड्डा दित्ता वित्थिन्ना विपुलभवणसयगासणजाणवाहणाइण्णा बहुधणबहुजायस्वरयया, आयोगपयोगसंपउत्ता विच्छड्डिय जीव होते हैं वे पंचेन्द्रिय होते हैं ( एरिसएणं गोयमा! मेहुणं सेवमा. णस्स असंजमे कज्जइ) अतःमैथुनकर्म में आसक्त हुए व्यक्ति को इस प्रकार का असंयम होता है । (सेवं भंते ! सेवं भंते ! हे भदंत! आप देवानुप्रिय ! ने जो कहा है वह सब सत्य ही है। इस प्रकार कहकर वे गौतम स्वामी भगवान को नमस्कार कर (जाव विरहइ) संयम और तपसे अपनी आत्मा को भावित करते हुए रहने लगे। मू० ७॥ ना छ. योनित यो पयन्द्रिय खाय छे. ( एरिसएण गोयमा ! मेहुण सेवमाणस्स असंजमे कज्जइ ) है गौतम! भैथुनमा मास४तो त प्रारना मसयभ से छे. (सेव भंते ! सेव भंते!) वानप्रिय मापना વાત તદ્દન સાચી છે. એમ કહીને ભગવાન મહાવીરને વંદણ નમ२४१२ ४शन (जावविहरइ ) गौतम स्वामी त५ मने सयमयी पाताना मात्मा२ मालित ४२i विड२ सय ॥ सू७॥ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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