________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२ उ०५ सू० २ गर्भस्वरूपनिरूपणम् __टीका- “ उदगगब्भेणं मंते ” उदकगर्भः खलु भदन्त ! " उदगगब्मेत्तिकालओ केवच्चिर होइ" उदकगर्भ इति कालतः किच्चिर भवति । तिष्ठतीत्यर्थः तत्रोदकगर्भः कालान्तरेण जलप्रवर्षणहेतुरुदक पुद्गल परिणामः, तस्य कियान् कालः ? इति प्रश्नः । भगवानाह–' गोयमा' इत्यादि 'गोयमा ' हे गौतम ! "जहण्णेणं एक्कं समय उक्कोसेणं छम्मासा" जघन्येन एक समयम् उत्कृष्टेन तक मानुषीगर्भरूप में रहता है ? ( गोयमा ! जहण्णेणं अन्तोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारससंवच्छराई ) हे गौतम ! मानुषीगभ कम से कम एक अन्तर्मुहूर्त तक और अधिक बारह वर्ष तक मानुषीगर्भरूप में रहता है।
टीकार्थ-(उद्गगम्भेणं भंते) कालान्तर में पानी बरसने में हेतुरूप जो जलसम्बन्धी पुद्गल का परिणाम है वह उदकगर्भ कहलाता है। सो इस बात को लक्ष्य में रखकर गौतमस्वामी ने प्रभु से यह प्रश्न किया है कि हे भदंत ! इस उदकगर्भ का कितना काल है ? अर्थात्यह उदक गर्भ अपने रूप में अधिक से अधिक कितने समय तक रहता है ? और कम से कम कितने समय तक रहता है ? तात्पर्य इस प्रश्न का यह है कि जिन जल सम्बन्धी पुद्गलों के परिणमन से जल बरसता है वे जल सम्बन्धी पुदल यदि वर्षारूप में न घरसे तो कम से कम कबतक न बरसें और ज्यादा से ज्यादाकपतक न बरसें? गौतम के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए प्रभु उनसे कहते हैं कि (गोयमा) हे गौतम! उदक गर्भ का काल (जहणणेणं) जघन्य से ( एक समयं) एक समय का है और सुधी भानुषी गम ३थे २३ छ. ( गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्त धक्कोसेणं बारससंबच्छराइं) गौतम ! मानुषीराम माछामा साछ। मतभुत भने વધારેમાં વધારે બાર વર્ષ સુધી માનુષી ગર્ભ રૂપે રહે છે. ___ -(उद्गगम्भेण भंते !) आणान्तरे न पुस १२साहना पा॥३ પરિણામે છે, તે પુલને ઉદકગર્ભ કહે છે. તે તે વાતને અનુલક્ષીને ગૌતમ સ્વામી ભગવાન મહાવીરને પૂછે છે કે હે ભદન્ત! તે ઉદકગભરની કાલસ્થિતિ કેટલી છે? એટલે કે તે ઉદકગર્ભ વધારેમાં વધારે કેટલા સમય સુધી અને ઓછામાં ઓછા કેટલાક સમય સુધી ઉદકગર્ભ રૂપે રહે છે ? પ્રશ્નનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-જે જળનાં પુલના પરિણમનથી વરસાદ વરસે છે તે જળનાં પુલે જે વરસાદ રૂપે વરસે નહીં તે ઓછામાં ઓછા કેટલા સમય સુધી વરસતા નથી અને વધારેમાં વધારે કેટલાક સમય સુધી વરસતાં નથી ! ગૌતમના તે પ્રશ્નને મહાવીર પ્રભુ આ પ્રમાણે ઉત્તર આપે છે (गोयमा!) गौतम ! (जहणे ण एक्कं समय) आना माछामा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨