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प्रमेयवन्द्रिका टोका श०२उ०५सू.१ अन्यमतनिरासपूर्वकस्वमतनिरूपणम् ७१५ एगेणं समएणं एगं वयं वेएइ तं जहा इस्थिवेयं वा पुरिसवेयं वा इत्था इस्थिवेएणं उदिण्णेणं पुरिसं पत्थेइ, पुरिसो पुरिसवेएणं उदिण्णेणं इत्थिं वेत्थइ, दो वि तं अण्णमण्णं पत्थेति तं जहा इत्थी वा पुरिसं, पुरिसे वा इतिथं ॥सू०१॥
छाया-अन्य यूथिकाः खलु भदंत ! एवमाख्याति भाषन्ते प्रज्ञापयन्ति प्ररूपयन्ति । तद् यथा एवं खलु निग्रंथः कालगतः सन् देवभूतेनात्मना स खलु तत्र नोऽन्यान् देवान् , नोऽन्येषां देवानां देवीरभियुज्याभियुज्य परिचारयति, नो आत्मीया देवीरभियुज्याभियुज्य परिचारयति । आत्मनैवात्मानं विकुऱ्या विकुर्व्य
सूत्रार्थ-(भंते ? अन्नउत्थियाणं एवं आइक्खंति, भासंति, पन्नति परुति ) हे भदन्त ! अन्यतीर्थिकजन ऐसा कहते हैं, ऐसा भाषण करते हैं, ऐसी प्रज्ञापना करते हैं ऐसी प्ररूपणा करते हैं (तंजहा ) कि ( एवं खलु नियंठं कालगए समाणे ) जब निर्ग्रन्थ कालगत हो जाता है तब वह ( देवभूएणं तु अप्पाणेणं ) देव की पर्याय से देवलोक में उत्पन्न हो जाता है। उस पर्याय से (से णं ) वह (नो अन्ने देवे ) न अन्यदेवों को, तथा ( नो अन्नेसि देवाणं देवीओ) न अन्य देवों की देवियों को ( अहिजुजिय अहिजुजिय ) अपने वश में कर करके (परियारेइ) विषयभोग करता है (णो अप्पणिच्चियाओ देवीओ अहिजुजिय अहिजंजिय परियारेइ ) और न अपनी देविओं को वश में करके उनके साथ विषय भोग करता है किन्तु (अप्पणामेव अप्पाणं विउन्धि
सूत्राथ- ( भंते ! अन्नउत्थिकाणं एवं आइक्ख ति भासं ति, पनवेति, परूवेंति ) महन्त ! मन्य मतवाही। मेदु । छ, मे लाप रे छे, मेवी प्रज्ञापन। ४२ छ, सवी ५३५९॥ ४२ छ (तंजहा) है ( एव खलु निय ठे कालगए समाणे ) न्यारे निथ पामे छे त्यारे (देवभूएणं तु अप्पाणेणं ) ते पक्षमा देवनी पर्याय पिन थाय छे. ते पर्यायमा उत्पन्न थयेस (से णं) ते ( नो अन्नेदेवे, नो अन्नेसिं देवाणं देवीओ) अन्य वोन अथवा अन्य वानी हवामाने ( अहिजुजिय अहिजुजिय) पाताने वश शन (परियारेइ) विषयला लागवत। नथी, (णो अपणिच्चियाओ देवीओअहिजुजिय अहिजुजिय परियारेइ) अथवा तो पोतानी हवामान १२ शन तमना साथै विषयता ४२तेनथी. ५ ( आपणामेव अपाणं विउव्विय विउव्विय
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨