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भगवती सूत्रे पंजलिउडे पज्जुवासमाणे' इति संग्राह्यम् । एवं वक्ष्यमाणप्रकारेण 'वयासी' अत्रादीव 'कनिहा णं भंते लोयट्टिई पन्नत्ता' कतिविधा खलु भदंत ! लोकस्थितिः प्रज्ञप्ता ? भगवानाह - ' गोयमे' - त्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! ' अद्भुविहा लोयट्टिई पन्नत्ता'
अभिमु विणणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे " इस पाठ का संग्रह किया है । इसका अर्थ इसप्रकार से है- गौतमने जब भगवान् को हे भदन्त ! इस पद से संबोधित कर पूछा तो एकदम नहीं पूछा किन्तु उन्होंने पूछने के पहिले भगवान् महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया । वंदना नमस्कार करके फिर वे उनके सन्मुख ऐसे बैठे कि जिससे वे न अधिक उनके पास प्रतीत होते थे और न अधिक दूर ही दिखलाई देते थे । उचित स्थान पर सन्मुख बैठने का कारण यह था कि वे भगवद्रचन को सुनने के अभिलाषी थे । वन्दना और नमस्कार करके भी जब वे अपने योग्य स्थानपर बैठने लगे तब पुनः उन्होंने प्रभुको बन्दना नमस्कार किया । सन्मुख बैठे हुए भी वे प्रभुको विनयपूर्वक दोनों हाथ जोडकर पूछने लगे। इस तरहकी क्रियासे वे प्रभुको भक्ति में लीन रहते आये हैं, यह बात सूत्रकारने प्रकट की है। गौतम ने प्रभु से क्या पूछा सो इसके लिये सूत्रकार कहते
- ( कइ विहा णं भंते ! लोयट्ठिई पन्नत्ता ) गौतम ने प्रभु से यह पूछा कि हे भदन्त ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ? प्रभु ने गौतम के इस प्रश्नका उत्तर क्या दिया इसे सूत्रकार बताते हुए कहते हैं कि(गोयमा ! अविहा लोयट्टिई पन्नत्ता) प्रभुने गौतम के द्वारा किए गए प्रश्नका
अभिमुद्दे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासमाणे " मा पाउने श्रणु उरवामां आयो છે. તેને અર્થ આ પ્રમાણે છે—ગૌતમસ્વામીએ જયારે ભગવાન મહાવીરને “ હે ભગવન્ ! એ પદથી સંખાધ્યા પછી એક ક્રમ પ્રશ્નો પૂછ્યા નહી પણ તેમણે પહેલાં તે ભગવાન મહાવીરને વંદા કરી, નમસ્કાર કર્યાં. વંદણા નમસ્કાર કરીને તેઓ તેમનાથી અતિ દૂર પણ નહીં અને અતિ નિકટ પણ નહીં એવા સ્થાને (ઉચિત સ્થાને) બેસીને પ્રશંસા કરતા થકા ભગવાનને ફરીથી નમસ્કાર કરીને ભગવાનની સામે અન્ને હાથ જોડીને વિનયપૂર્વક પ પાસના કરતા, થકા પૂછવા લાગ્યા. આ સૂત્રેા વડે ગૌતમ સ્વામીની ભગવાન પ્રત્યેની ભક્તિ અને વિનય દર્શાવવામાં આવેલ છે. હવે ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને પૂછેલા પ્રશ્નો અને પ્રભુ વડે તે પ્રશ્નોના જે ઉત્તરા અપાયાતે સૂત્રકાર બતાવે છે.
प्रश्न - ( कइविहाणं भंते ! लोयट्टिई पन्नत्ता ) हे अलो ! बोउनी स्थिति हैटसा अहारनी उही छे. उत्तर - (गोयमा ! अट्ठविहा लोयट्ठिई पण्णत्ता) डे गौतम !
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨