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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० २ उ० ३ सू० १ पृथिव्यादिस्वरूपनिरूपणम् ७४३ छाया-कति भदंत ! पृथिव्यः प्राप्ताः,१जीवाभिगमे नैरयिकाणां यो द्वितीय उदेशकः स नेतन्यः पृथिवीमवगाह निरयाः संस्थानमेव वाहल्यविष्फम्मपरिक्षेपी वर्णो गन्धश्च स्पशश्च ॥ १ ॥ यावत्. किं सर्वे प्राणा उत्पन्नपूर्वाः : हन्त गौतम! असकृत् अथवा अनन्तकृत्वः पृथिव्युदेशकः) ६ सू०१॥ द्वितीयशकस्य तृतीयउद्देशः समाप्तः सूत्रार्थ-(कइणं भंते ! पुढवीओ पपणत्ताओ ) हे भदन्त ! पृथि वियां कितनी कहीगई हैं ? (जीवाभिगमे नेरइयाणं जो वितिओ उद्देसो सो णेयव्यो ) जीवाभिगम सूत्र में कहा गया जो नारक संबंधी दूसरा उद्देशक है वह यहां जानना चाहिये। यहां द्वारगाथा है " पुढवी ओगाहित्ता निरया संठाणमेव बाहल्लं । विक्खंभ परिक्खेवो वण्णो गंधो य फासो य ॥१॥ इस उद्देशक में पृथिवी संबंधी, (पृथिवी को अवगाहन करके कितनी दर नारक रहते हैं ) इस संबंधी, संस्थान संबंधी, पृथिवियों की मोटाई संबंधी, विष्कंभ परिक्षेप संबंधी, वर्ण, गंध और स्पर्श संबंधी कथन है। (जाव किं सव्वे पाणा उववन्नपुव्वा) हे भदन्त । वहां क्या समस्त जीव उपपन्नपूर्व-पहले-उत्पन्न होये हुए हैं क्या ?। (हंता गोयमा ! असइं, अदुवा अणंतक्खुत्तो पुढची उद्देसो) हां, गौतम ! अनेकवार अथवा अनन्तवार उनपृथिवियों में समस्त जीव उपपन्नपूर्व हैं । इस प्रकार यह पृथिनी उद्देशक है ॥ सू० १॥ सूत्राथ-( कइणं भंते ! पुढवीओ पण्णत्ताओ ) 3 महन्त ! पृथ्वीमे। (१२) eeी ही छ ? (जीवाभिगमे नेरइयाण जो बितिओ उद्देसो सोणेयव्वो) જીવાભિગમસૂત્રના નારક વિષેના બીજા ઉદ્દેશકમાંથી આ વિષય જાણી લે. તેના વિષે આ દ્વાર ગાથા છે– " पुढवी ओगाहिसा निरया संठ णमेव बाहल्ल । विक्खभपरिक्खेवो वण्णो गंधो य फासो य ॥ १ ॥ આ ઉદ્દેશકમાં પૃથ્વી વિષે “પૃથ્વીની અવગાહના કરીને કેટલે દૂર સુધી નારક રહે છે” તે વિષે, સંસ્થાન વિષે, પૃથ્વીઓના વિરતાર વિષે, પૃથ્વીઓના વિધ્વંભ અને પરિક્ષેપ વિષે, વર્ણ ગંધ અને સ્પર્શ વિષે વર્ણન કર્યું છે (जाप किं सव्वे पाणा उववन्नपुव्वा ) 3 महन्त ! समस्त ७ शु. त्यां पडला त्पन्न २४ गया डाय छ ? (हता गोयमा ! असई, अदुवा, अणत. क्खतो पुढवी उद्देसो), गौतम ! अने४वार अथवा मनत पा२ समस्त તે પૃથ્વીઓમાં ઉત્પન્ન થઈ ચુક્યા હોય છે. પૃથ્વી ઉદ્દેશક આ પ્રકાર છે સૂ૦૧ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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