________________
-
७५२
भगवतीसूत्र अच्युतकल्पे देवो जात इति भावः " तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं बोवीसं सागरोवमाई ठिई पणत्ता " तत्र खलु अस्त्ये केषां देवानां द्वाविशतिः सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ता "तस्स ण खंदयस्स वि देवस्स बावीसं सागरोवमाइं ठिई पणत्ता" तस्य खलु स्कन्दकस्यापि देवस्य द्वाविंशतिः सागरोपमाणि स्थितिः प्रज्ञप्ताः गौतमः पृच्छति " से णं भंते" स खलु भदंत ! " खंदए देवे " स्कन्दको देवः "ताओ देवलोयाओ" तस्मात् देवलोकात् “आउक्खएणं भवक्रवएणं ठिइक्खएणं' आयुः क्षयेण भवक्षयेण, स्थितिक्षयेण, तत्र आयुः क्षयेणायुष्कर्मदलिक निर्जरणेन भवक्षयेण, देवभवनिवन्धनकर्मणां गत्यादीनां निर्जरणेन स्थितिक्ष पेण आयुष्क कर्मणः स्थितिवेदनेन " अणंतर " अनन्तगत् " चयं " देवभवसम्बन्धिनं शरीर " चात्ता" च्युत्वा त्यक्त्या कहिं गच्छहिइ" कुत्र गमिष्यति " कहिं उववज्जिस्कन्दक अनगार मर कर अच्युत कल्प में देव की पर्याय से उत्पन्न हुए हैं । (तत्य णं अत्याइयाणं देवाणं बावीस मागरोत्रमई ठिई पण्णता) वहां पर कई एक देवों की बाई म मागरोपमतमाण स्थिति कही गई है सो (नस्मणं खंदयस्म वि देवस्म बावीस मागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता) उस स्कन्दक देव की भी बाईम सागरोपम प्रमाण स्थित्ति है। अब भगवान गौतमस्वामी उस देव के विषय में पुनः प्रभु से पूछते हैं-(से णं भंते ! खंदए देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं, भवखएणं, ठिइक्खएणं, अणतरं चपंचइत्ता कहिं गच्छहिड ) हे भदन्त ! वह स्कन्दक देव उस देवलोक से आयुष्कर्म के दलिकों की निर्जरा होनेसे, देवभव के कारणभूत गत्यादिक कों की निर्जरा होने से तथा आयुष्कर्म की स्थिति का वेदन कर लेने से देव भवसंबंधी शरीर का परित्याग कर कहां जावेगा , कहां उत्पन्न होगा ?। इसका उत्तर देते हुए प्रभु कहते हैंभारमा वसोमा हेवनी पर्याय उत्पन्न थया. ' तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं बावीस मागगेवमाई ठिई पण्णत्ता" ते देवसभा येता देवेनु सायुष्य यावीस साग।५मनु डाय छे. "तस्म णं खदयस्स वि देवस्स बावोस सागगे. वमाइं ठिई पण्णत्ता" मे०४ प्रमाणे त्यांनु २४६४ सानुमायुष्य ५५ ॥ीस साग३।५भर्नु सभा'. गौतभस्वामी ते वना विषयमा भी प्रश्न पूछे छ-"से णं भते! खदए देवे ताओ देवलोयाओ आउखएणं भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणे. तर चयं चइत्ता कहि गछहिइ" उ महन्त ! ते २४४४ हे., ते वसभा આયુ કર્મના દલિકેની નિર્જરા થતાં, દેવભવના કારણરૂપ ગત્યાદિક કર્મોની નિર્જરા થતાં, તથા આયુષ્ક કર્મની સ્થિતિનું વેદન કરી લીધા પછી દેવભવ સંબંધી શરીરને પરિત્યાગ કરીને ક્યાં જશે, કયાં ઉત્પન્ન થશે? તેનો ઉત્તર
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨