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________________ - - -- भगवतीसूत्रे न्तरञ्च खलु च्युत्वा कुत्र गमिष्यति कुत्र उपपत्स्यते गौतम ! महाविदेहे वर्षे सेत्स्यति भोत्स्यते मोक्ष्यते परिनिर्वास्यति सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति ॥ मू० १७॥ टोका-"तएणं ते थेरा भगवंतो" ततः स्कन्दकस्य कालगमनानन्तरम् खलु ते स्थविराः भगवन्तः " खंदयं अणगारं कालगयं जाणित्ता" स्कन्दकम् अनगारं कालगतं ज्ञात्वा “ परिनिव्वाणवत्तियं काउसगं करेंति" परिनिर्वाणप्रत्ययं कायोत्सर्ग कुर्वन्ति । परिनिर्वाणं मरणं तत्र मरणे यत् शरीरस्य परिष्ठापनं तदपि परिनिर्वाणमेव तदेव प्रत्ययो हेतुर्यस्य स परिनिर्वाणप्रत्ययस्तम् परिनिर्वाणप्रत्ययम् कहिं गच्छिहिइ, कहिं उववज्जिहिइ ) हे भदन्त ! वे स्कन्दक देव देव लोक से अपनी आयु के क्षय होने पर, भव के क्षय होने पर, स्थिति के क्षय होने पर च्यवकर कहां जावेंगे, कहां उत्पन्न होंगे ? ( गोयमा) हे गौतम ! (महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिणिवाहिह, सव्वदुक्खाणं अतं करेहिइ) वे स्कन्दक देव अच्युत देवलोक सेच्यव कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे मुक्त होंगे परिनिवृत होंगे और समस्त दुःखों का अन्त करेंगे ॥ सू० १७॥ टीकार्थ-(तएणं ते थेरा) स्कन्दक के कालगत हो जाने केषाद उन स्थविर भगवन्तों ने (खंदयं अणगारं कालगयं जाणित्ता) स्कन्दक अनगार को कलगत जानकर (परिनिव्वागवत्तिय काउसग्गं करेंति ) परि निर्वाणिप्रत्ययवाला कोयोत्सर्ग किया । परिनिर्वाण शब्द का अर्थ मरण है। इस मरण में जो शरीर का परिष्ठापन होना है वह भी परिनिर्वाण ही है । यह परिनिर्वाण जिसे कायोत्सर्ग करने में कारण होता है, वह उववन्जिहिइ) 3 महन्त ' ते २४४४३५ हेक्टमाथी तमना मायुन। क्षय यता, ભવને ક્ષય થતા, સ્થિતિને ક્ષય થતા, ત્યાંથી અવિને કયાં જશે? કયાં ઉત્પન્ન थशे ? ( गोयमा !) गौतम ! ( ( महाविदेहे वोसे सिमिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिणिवाहिइ, सधदुक्खण अंत करेहिइ) ते २४.४४ ३५ अत्युत દેવલોકમાંથી ચ્યવને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં સિદ્ધ થશે, બુદ્ધ થશે, મુક્ત થશે, પરિનિવૃત थरी भने समस्त मोनो मत ४२ना२ थरी ॥ सू० १७ ॥ टी-( तएण ते थेरा खंदय अणगार कालगय जाणित्ता) ते स्थविले ज्यारे एयु २४४४ २मा२ यम पाभ्या छे, त्यारे तेमणे (परि. निव्वाणवत्तिय काउसग्गं करें ति ) ५३निर्माण प्रत्ययवाणे अयोस यो परि. નિર્વાણ એટલે મરણ આ મરણમાં જે શરીરનું પરિષ્ઠાપન થાય છે તેનું નામ પણ પરિનિર્વાણુ જ છે આ પરિનિર્વાણ જે કાર્યોત્સર્ગ કરવામાં કારણરૂપ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૨
SR No.006316
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1962
Total Pages1114
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size65 MB
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